बाढ़ और सूखे की समस्या का स्थाई समाधान ढूंढने के लिए देश में चल रही महत्वाकांक्षी केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से जल संकट और गहरा सकता है। इससे मानसून का नियमित तंत्र भी प्रभावित हो सकता है। यह दावा 'नेचरÓ जर्नल में प्रकाशित एक शोध अध्ययन में किया गया है। यह शोध भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई, उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे ने किया है। अध्ययन में हैदराबाद विश्वविद्यालय और किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक भी शामिल थे। शोध में क्षेत्रीय जलवायु स्थितियां और आंकड़ों का विश्लेशण सहित मानसून से जुड़ी कई तकनीकियों का उपयोग किया गया। ताकि इन बड़ी परियोजनाओं के पूरी होने पर भविष्य में उत्पन्न होने वाले जल और मौसम संबंधी नतीजों के जटिल तंत्र को सामने ला सकें।
शोध में क्षेत्रीय जलवायु पारिस्थितिकी तंत्र और आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद पाया कि जो अलनीनो दक्षिणी दोलन जैसी परिस्थितियों को प्रभावित करते हैं। अतएव नदी जोड़ो योजना पूरी होने के बाद इसके क्षेत्र में आने वाला जल-स्थल वायुमंडल अंतरसंबंध को बिगाड़ सकता है। इससे वायु और नमी का स्तर प्रभावित होगा। नतीजतन देश में ये नदी जोड़ो क्षेत्र विशेष में बारिश का परंपरागत रुझान बदल सकता है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पानी दूसरी नदी में जाने से सिंचित क्षेत्र बढ़ेगा, जो पानी की कमी का सामना कर रहे इलाकों में सितंबर की बारिश में 12 प्रतिशत तक की कमी ला सकता है। गोया, ऐसा होता है तो नदी जोड़ो योजना का संकट न केवल इस, परियोजना से लाभान्वित होने वाले इलाकाई लोगों को झेलना होगा बल्कि मौसम के तंत्र पर भी इसका विपरीत असर दिखाई देगा। भारत में एनडब्ल्यूडीए के अनुसार 30 नदियों को जोड़ा जाना है। इनमें प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 और हिमालयी घटक के अंतर्गत 14 नदियों को जोड़े जाने की पहचान कर ली गई है। इनमें से आठ योजनाओं की डीपीआर भी बना ली गई है।
प्रस्तावित करीब 120 अरब डालर अनुमानित खर्च की नदी जोड़ों परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना और दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना। प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी, गोदावरी, पेन्नार, कृष्णा, पार, तापी, नर्मदा, दमनगंगा, पिंजाल और कावेरी को जोड़ा जाएगा। पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी। यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना इस परियोजना का हिस्सा है। हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, बह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इक_ा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ का सामना करने से निजात मिल सके। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घांघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दमोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा। करीब 13,500 किमी लंबी ये नदियां भारत के संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों में अठखेलियां करती हुईं मनुष्य और जीव-जगत के लिए प्रकृति का अनूठा और बहुमूल्य वरदान बनी हुईं हैं। 2528 लाख हेक्टेयर भू-खण्डों और वनप्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति 690 घन मीटर जल है। कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टेयर भूमि में से 546 लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत प्रति वर्ष सिंचित की जाकर फसलों को लहलहाती हैं।
ऐसा दावा किया जा रहा है कि बाढ़ और सूखे से परेशान देश में नदियों के संगम की केन-बेतवा नदी परियोजना मूर्त रूप ले लेती है, तो भविष्य में 60 अन्य नदियों के मिलन का रास्ता खुल जाएगा। दरअसल बढ़ते वैश्विक तापमान, जलवायु परिवर्तन, अलनीनो और बदलते वर्षा चक्र के चलते जरूरी हो गया है कि नदियों के बाढ़ के पानी को इक_ा किया जाए और फिर उसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नहरों के जरिए भेजा जाए। ऐसा संभव हो जाता है तो पेयजल की समस्या का निदान तो होगा ही, सिंचाई के लिए भी किसानों को पर्याप्त जल मिलने लग जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार हैं)