देश-दुनिया को आरएसएस का नया मंत्र

अनिल द्विवेदी

Update: 2021-10-17 13:11 GMT

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश-दुनिया को नया मंत्र दिया है. सरसंघचालक मोहन भागवतजी ने कहा कि अपने पूर्वजों के त्याग और बलिदान को याद करके, बिना किसी को शत्रु बनाए, सभी में राष्ट्रप्रेम की भावना और सदभाव जगाकर ही देश को विश्व गुरू बनाने तथा अखण्ड भारत का सपना साकार हो सकता है! सरंसघचालकजी के उदबोधन की व्याख्या कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी.


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता विशालकाय स्वयंसेवी संगठन माना जाता है. अपने जन्म की शताब्दी मनाने की ओर बढ़ रहे आरएसएस की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में संस्थापक सरसंघचालक स्व.केशवराव बलिराम हेडगेवार के द्वारा की गई. समाज में चरित्र निर्माण और देश सर्वोपरि का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे संघ की दुनियाभर में शाखाएं हैं और अनेकों अनुषांगिक संगठन उसके विचारों को अपनाकर समाजसेवा कर रहे हैं. संघ के स्वयंसेवक राजनीति से लेकर विविध क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहे हैं इसलिए विजयादशमी के दिन जब सरसंघचालक मोहन भागवत जी उदबोधन देते हैं तो देश—दुनिया उसे सुनने—समझते को आतुर रहती है. इस लेख में सरसंघचालकजी के ताजा उदबोधन की व्याख्या की गई है जो इस प्रकार है :

नागपुर में विजयादशमी के दिन सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने अपने वक्तव्य की शुरूआत आजादी मिलने के बाद के दौर से की. उन्होंने कहा कि देश के सभी क्षेत्रों, जातिवर्गो से निकले वीरों ने तपस्या, त्याग और बलिदान देकर आजादी पाई लेकिन भेदजर्जर मानसिकता, स्वधर्म स्वराष्ट्र और ढुलमूल नीति के कारण देश बंट गया जिसकी वेदना प्रत्येक भारतवासी के मन में है. देश की नई पीढ़ी को इसे जानना—समझना चाहिए. हमें खोई हुई एकात्मा और अखण्डता पुन: प्राप्त करना है लेकिन किसी से शत्रुता पालकर नही. ऐसा लगता है मानो भागवतजी देश को यह संदेश दे रहे हैं कि कभी भारत की सीमाएं अफगानिस्तान तक थी लेकिन जिस तरह पाकिस्तान और बांगलादेश भारत से अलग हुए, वही अखण्डता हमें पुन: प्राप्त करना चाहिए हालांकि उन्होंने चेताया कि ऐसा किसी से शत्रुता पालकर नही हो सकता विशेषकर मुसलामानों से. उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना और सदभाव जगाकर ही अखण्ड भारत की कल्पना साकार हो सकती है.

भारत की अखण्डता व एकात्मता कायम रखने की परंपरा शतकों पुरानी रही है. यह वर्ष गुरू तेगबहादुर के प्रकाश का 400वां वर्ष है. वे हिंद की चादर कहलाए. उन्होंने पंथ सम्प्रदाय यानि मुगलों की कटटरता के आगे ना झुकते हुए पंथ उपासना की स्वतंत्रता कायम रखने के लिए अपना बलिदान दिया और दूसरे वीरों के लिए प्रेरणा बने. श्री भागवत ने भारत के विश्व गुरू बनने का सपना सामने रखते हुए कहा कि कटटरपंथी और सनातन धर्म के विरोधी इस सपने को पूरा नही होने देना चाहते. ये दोनों अप्रत्यक्ष तौर पर मिलकर भारतीय समाज को बंटे रहने देना चाहते हैं नतीजन वे ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया को भी भ्रमित और आतंकित करने का काम कर रहे हैं. श्री भागवत ने संत ज्ञानेश्वर महाराज, गुरूदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर, कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी की रचनाओं को स्मरित करते हुए कहा कि विश्व को खोया हुआ उसका संतुलन व परस्पर मैत्री की भावना देने वाला धर्म का प्रभाव ही भारत को प्रभावी करता है. हमें सजग रहते हुए एक साथ इन मानवता विरोधी शक्तियों को परास्त करना होगा.

सरसंघचालक मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता पर जोर दिया. इस कार्य में सबसे बड़ी बाधक जातिगत विषमता है. इसे मिटाने की सबसे बड़ी उम्मीद बौद्धिक समाज से है लेकिन वहां भी बिगाड़ करने वाले अधिक हैं. भागवत ने इसका उपाय बताते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता का वातावरण बनाने में लगे हैं. लेखक का मानना है कि भागवत की चिंता का समाधान मोबाइल और टीवी में अनावश्यक समय—खर्च से दूर रहने में दिखाई देता है. हमें अपने पड़ोस, दोस्त और रिश्तेदारों के बीच कोई दिन और समय तय करके प्रत्यक्ष मिलने का कार्यक्रम बनाना चाहिए. अन्यथा सोशल मीडिया में भले ही आपके पांच हजार दोस्त हों लेकिन दुख के वक्त सिर्फ परिवार ही खड़ा पाया जाता है! जानते चलें कि संघ के प्रचारक और स्वयंसेवक कार्यक्रम बनाकर इस लक्ष्य को पूरा करते हैं.

सरसंघचालक मोहन भागवत जी की अगली चिंता देश के स्वातंत्रय तथा एकात्मता में नजर आई. सरसंघचालक जी ने दो नयी चुनौती को सामने रखा. पहली ओ.टी.टी प्लेटफॉर्म और दूसरी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बिटक्वाइन का दुनियाभर में फैलता अनियंत्रित जाल. इससे आर्थिक स्वैराचार फैल रहा है जो सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक चुनौती है. लेखक ने खुद अपने वाटसअप ग्रुप में ऐसे ग्रुप पाए हैं जो बिटक्वाइन खरीदने को प्रोत्साहित कर रहे हैं. भागवतजी ने अनियंत्रित ओ.टी.टी प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने की आवश्यकता जतलाते हुए कहा कि अभी इस पर कोई भी वर्ग, कुछ भी देख सकता है. आखिर यह समाज को किधर और कहां तक ले जाएगा! सरकार को चाहिए कि समय रहते इन दोनों ही मामलों पर उचित नियंत्रण कानून बनाए.

मन का ब्रेक—उत्तम ब्रेक' सूत्र देते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने कुटुंब प्रबोधन यानि पारिवारिक संवाद पर फोकस रखा. उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक यह कार्य कर रहे हैं लेकिन यदि तकनीकी हमलों और सांस्कृतिक प्रदूषण से बचना है तो भारतीय परिवार में प्रबोधन का कार्य शुरू होना चाहिए. हम यह कर सकते हैं क्योंकि हमारे संस्कारों में यह शामिल है. जैसे परिवार का एक साथ ध्यान—भजन करना, वार्तालाप करना, सुख—दु:ख की चर्चा करना, एक समय का भोजन एक साथ करना, बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन लेना इत्यादि कार्य कुटुंब प्रबोधन के तहत हो सकते हैं ताकि परिवार और समाज का क्षरण रोका जा सके.

सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने कोरोना महामारी से निबटने में समाज के आत्मविश्वास, साहस और संघर्ष को सराहा. कई बंधुओं ने अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए दूसरों की जान बचाई, यह अभिनंदनीय है. हालांकि संकट के बादल छंटे नही हैं लेकिन संघ के स्वयंसेवक और दूसरे संगठनों के लोग टीका लगवाकर अब सुरक्षित, प्रशिक्षित और सतर्क हैं. वे भारतीय अर्थव्यवस्था को ठीक करने में अपना योगदान दे रहे हैं. इनकी सबकी सहभागिता यदि शासन प्राप्त कर ले तो उपरोक्त संकट का सामना देश कर लेगा. श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के लिए धन संग्रह अभियान कोरोनाकाल में ही चला और समाज ने उत्साहपूर्ण और भक्तियुक्त प्रसाद दिया. उन्होंने कोरोनाकाल में ही ओलंपिक खिलाड़ियों द्वारा पदक जीतने के पुरूषार्थ की तारीफ की और देश ने उनका अभिनंदन किया.

श्री भागवत ने अपने उदबोधन में 'स्वास्थ्य के प्रति हमारी दृष्टि' का विचार सामने रखा. कहा कि कोरोकाल ने हमें विश्वास दिलाया है कि हम भी किस तरह फिजूलखर्ची और तामझाम से बचते हुए पर्यावरण—सुसंगत जीवनशैली जी सकते हैं. संघ के स्वयंसेवक पानी बचाना, प्लास्टिक छुड़ाना तथा पेड़ लगाना जैसी आदतों को लोगों में डालने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने आयुर्वेद बनाम एलोपैथी के विवाद का निदान बतलाते हुए कहा कि चिकित्सा पद्धतियों के अहंकार से उपर उठना होगा. घर से लेकर ग्राम, तहसील, जिला और महानगर स्तर पर अलग—अलग चिकित्सा पद्धतियों का इस्तेमाल करते हुए सस्ती, सुलभ, परिणामकारक चिकित्सा आमजनों को मिलनी चाहिए. श्री भागवत ने भारतीयों की आर्थिक दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी आर्थिक दृष्टि में उपभोग नही संयम का महत्व है. देश में नई आर्थिक रचना खड़ी करनी है तो प्रत्येक भारतीय को सबके सुखों की चिंता करते हुए उनका समग्र व एकात्म विकास हो सकता है.

सरसंघचालक मोहन भागवतजी ने अपने उदबोधन में जनसंख्या नीति का प्रश्न उठाया. उन्होंने कहा कि 2011 की जनगणना के आंकड़े चिंतित कर देते हैं इसलिए जनसंख्या नीति पर पुर्नविचार की जरूरत है. भारत उन प्रमुख देशों में शामिल हैं जिसने 1952 में ही स्थिर और स्वस्थ जनसंख्या का लक्ष्य रखा था लेकिन 2005—06 का राष्ट्रीय प्रजनन एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण और सन 2011 की जनगणना के प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1951 से 2011 के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या में जहां 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 14.23 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है, वहीं हिन्दु और अन्य मतपंथियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 हो गया है. दूसरे देशों से हो रही घुसपैठ भी मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि का प्रमुख कारण है इसलिए सरकार को चाहिए कि जनसंख्या नीति का पुर्ननिर्धारण कर उसे समान रूप से लागू करे. सीमापार हो रही घुसपैठ पर अंकुश लगाया जाए, घुसपैठियों को नागरिकता पाने और भूमि खरीदी के अधिकार से वंचित किया जाए तथा देश में एनआरसी यानि राष्ट्रीय नागरिक पंजिका का निर्माण हो.

सरसंघचालकजी ने अपने उदबोधन में देश की एकात्मता का सूत्र सामने रखा. उन्होंने हसनखां मेवाती, हाकिमखान सूरी, खुदाबख्श, गौसखां और अशफाकउल्लाखान को याद करते हुए कहा कि ये क्रांतिकारी सभी के लिए अनुकरणीय हैं. हमारी एकात्मता का सूत्र भारत की सभी भाषिक, पांथिक, प्रांतीय, सम्मान तथा सभी को विकास के संपूर्ण अवसर की भावना से प्रेरित संस्कृति है. हमारी पूजा पद्धति अलग हो सकती है लेकिन हम सबको अपना अहंकार भूलते हुए, अपने पूर्वजों के अनुरूप इस राष्ट्र के लिए एक साथ खड़ा होना होगा. श्री भागवत ने हिन्दुओं की भावनाओं को सामने रखते हुए कहा कि पूर्व में यदि कुछ परस्पर कलह, अन्याय, हिंसा की घटनाएं घटी हैं या वर्तमान में ऐसा कुछ हुआ हो तो उसके कारणों को समझकर उनका निवारण करते हुए वैसी घटना न घटे, परस्पर विद्वेष व अलगाव दूर हों, ऐसी वाणी व कृति होनी चाहिए. स्पष्ट है कि यह संदेश उन कटटर हिंदुओं के लिए है जो मुस्लिमों की भावनाएं आहत करते रहते हैं. बल, शील, ज्ञान तथा संगठित समाज को ही दुनिया सुनती है.

श्री भागवत ने सीमा पार तालिबानी शासन, चीन और पाकिस्तान द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों पर चिंता जताते हुए कहा कि हम आश्वस्त होकर नही रह सकते. बातचीत का रास्ता खुला रखते हुए सुरक्षा में स्वनिर्भरता, सायबर सुरक्षा पर तैयारी करनी होगी. जम्मू कश्मीर में फिर से आतंकवादियों ने लक्षित हिंसा का मार्ग अपनाया है, इसकी चिंता करते हुए आतंकवाद की समाप्ति के प्रयासों में और गति लाने की आवश्यकता है.

उन्होंने हिंदू मंदिरों का सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार ट्रस्ट बनाकर मंदिरों की चल—अचल संपत्ति का संचालन ट्रस्ट के जिम्मे कर देती है जबकि इसमें अभक्त और अधर्मी—विधर्मी भी जुड़े होते हैं. कुछ लोग सेक्युलर' होते हुए हिंदु धर्मस्थानों की व्यवस्था के नाम पर दशकों तक संपत्तियों को हड़प लेते हैं इसलिए सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हिंदु मंदिरों का संचालन हिंदू भक्तों के ही हाथों में हो, ऐसी व्यवस्था बनाने का विचार सरकार को करना चाहिए.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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