दीपोत्सव के पाँच दिन

रमेश शर्मा

Update: 2023-11-09 19:09 GMT

भारत का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार दीपावली है । यह पाँच दिवसीय दीपों का उत्सव है। जो कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तक चलता है। पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन रूप चतुर्दशी, तीसरे दिन दीपावली, चौथे दिन गोवर्धन पूजन और पाँचवें दिन भाई दूज से इस उत्सव का समापन होता है। इस पाँच दिवसीय उत्सव श्रृंखला की अलग-अलग पौराणिक कथाएं हैं जिनकी स्मृति के रूप में आयोजन होता है। अन्य उत्सवों की भांति इन पौराणिक संदर्भों का निमित्त भी जनकल्याण है। यह बहुआयामी है। व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण, राष्ट्र निर्माण और समाज समरस सशक्तिकरण।

पौराणिक संदर्भ : पौराणिक संदर्भ के अनुसार यह अवधि समुद्र मंथन की भी है। कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धनवंतरि जी प्रकट हुये थे। धनवंतरि जी को आरोग्य का देवता माना गया है जबकि वैद्य या चिकित्सक के रूप में अश्विनी कुमार हैं। अब यह भगवान धनवंतरि जी के नाम का अपभ्रंश हो या स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन। इस तिथि का नाम धनतेरस हो गया। इस दिन दोनों कार्य होते हैं। आरोग्य वृद्धि का भी और धन वृद्धि कामना भी। स्वास्थ्य का संरक्षण ही जीवन को सुखद बनाता है। इसलिये धनतेरस के दिन ये दोनों काम होते हैं। प्रात: उठकर जड़ी बूटी युक्त जल से स्नान, व्यायाम, आहार संतुलन ताकि रोगों का संक्रमण न हो। वही व्यक्ति स्वस्थ रहेगा जो अपनी आंतरिक ऊर्जा से रोगाणुओं पर नियंत्रण कर सकता है।

अगला दिन रूप चतुर्दशी का है। इसे नर्क चतुर्दशी भी कहते हैं। यह तिथि स्वयं की साधना का मूल्यांकन है। इस दिन जिस प्रकार प्रात: उठकर स्नान, व्यायाम, योग साधना का विधान है यह एक प्रकार से स्वयं के शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य की साधना और दिनचर्या संकल्प का है। वर्षा और शरद ऋतुओं के अनुरूप जीवनचर्या बनाई थी तो आरोग्य का सशक्तिकरण एवं आंतरिक ऊर्जा का संचार होता है। तब चेहरे की काँति बढ़ती है। इस काँति के कारण ही व्यक्ति को रूपवान कहा जाता है। यह तिथि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की समृद्धि की परीक्षा का दिन है। इसलिये तिथि का नाम रूप चतुर्दशी है। धन और सामर्थ्य के अभाव में व्यक्ति का जीवन नर्क के समान है। इसलिए इस तिथि को नर्क चतुर्दशी भी कहा जाता है । इस तिथि के लिये पुराणों में एक कथा का भी वर्णन है । इस दिन नरकासुर का वध हुआ था । उसके अत्याचार से मानवता मुक्त हुई थी।

तीसरा दिन दीपावली का है। इसी दिन भगवान राम चौदह वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे । उनके आगमन के आनंद में दीपोत्सव हुआ। इस परंपरा के पालन में इस तिथि को दीपावली मनाई जाती है। साथ ही एक वैज्ञानिक दर्शन भी है। वर्ष में कुल बारह अमावस होतीं हैं। सभी बारह अमावस में कार्तिक की यह अमावस अपेक्षाकृत अधिक अंधकार मय होती है। चंद्रमा स्वयं प्रकाशमान ग्रह नहीं है। वह सूर्य के प्रकाश का परावर्तन करता है। चूंकि दोनों गृह स्थिर नहीं हैं। दोनों सतत गतिमान हैं इसलिये हमें दिन और रात दोनों में प्रति क्षण प्रकाश की प्रदीप्ता में अंतर दिखाई देता है। प्रकाश स्तर का स्थायित्व कभी क्षण भर भी नहीं रहता। इसलिये प्रत्येक पूर्णिमा या प्रत्येक अमावस पर प्रकाश और अंधकार दोनों का स्तर अलग होता है, प्रदीप्ता और अंधकार के अनुपात में अंतर होता है। कार्तिक अमावस पर दोनों ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी बनती है, या ऐसे कोण पर स्थित होते हैं कि इस रात के अंधकार में सबसे गहरापन होता है। अंधकार की यह गहनता प्राणी के लिये एक चुनौती होती है। अंधकार की इस गहनता को परास्त करने का संकल्प है दीप मालिका । इससे जगत अमावस की इस घनघोर रात्रि में भी प्रकाशमान हो उठता है । दीपोत्सव यह संदेश भी देता है कि परिस्थिति कितनी भी विषम हों, अंधकार कितना ही गहन हो, यदि उचित दिशा में उचित परिश्रम और पुरुषार्थ किया जाय तो अनुकूल आनंद हो सकता है ।

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजन होता है । इस दिन गोबर से पर्वत का प्रतीक बनाकर पूजा की जाती है और पशुओं का श्रृंगार करने की परंपरा है। पुराण कथा के अनुसार यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने से जुड़ी हुई है। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर प्रकृति के कोप से मानवता की रक्षा की थी । उसी स्मृति में गोवर्धन पूजा होती है । पर्वत के प्रतीक का पूजन पर्वतों के संरक्षण से जुड़ा है । यह तिथि पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है। यदि समाज द्वारा पर्वत संरक्षित है, सुरक्षित है तो पूरी प्रकृति ही नहीं मानवता भी सुरक्षित है । पर्वतों की सुरक्षा से नदी तालाब तथा अन्य जल स्रोत सुरक्षित रहते हैं, पर्वतीय सुरक्षा ही वनों को सुरक्षा देती है। पर्वत पर ही पनपती है औषधीय वनस्पति जो मनुष्य को आरोग्य देती है। इसलिए यह तिथि गोवर्धन पूजन के माध्यम से पूरी प्रकृति को सुरक्षित रखने का संकल्प और प्रतीक है । दीपावली का समापन भाई दूज से होता है। पुराणों में इस तिथि को यम द्वितिया भी कहा गया। यह तिथि भाइयों को संदेश है कि भले बहन का विवाह हो गया। वह दूसरे घर चली गई पर उसकी चिंता करना है। यह दोनों परिवारों के बीच समरसता का संदेश है । इस प्रकार दीपोत्सव के ये इन पाँच दिनों में समाज का ऐसा कौनसा वर्ग है जिससे संपर्क नहीं बनता। जिसकी भूमिका महत्वपूर्ण है । समाज के हर वर्ग और प्रकृति के साथ एकाकार होने का त्यौहार है दीपावली।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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