वो सूरज था, मगर था चाँद सा प्यारा
कै. श्रीमंत महाराजा माधवराव सिंधिया की जयंती पर विशेष
कै. श्रीमंत महाराजा माधवराव सिंधिया, जिन्हें हम आज उनके जन्म दिन के अवसर पर याद कर रहे हैं वह इसलिए कि, वे अपने पीछे एक ऐसी परंपरा छोड़ गये हैं। जिसे हम समरसता और विकास के मसीहा के रूप में जानते हैं। उनकी सौम्यता, सहजता और मिलनसार प्रवृति उन्हें दूसरों से अलग करती है। देश ही नहीं अपितु विश्व के सबसे प्रतिष्ठित परिवार में जन्में माधवराव सिंधिया अपनी धरा के व्यक्तियों के दिलों में आज भी जीवित हैं, एक महाराजा के रूप में नहीं , अपने जीवंत जुड़ाव के कारण। ग्वालियर रियासत के महाराजा होने बावजूद माधवराव सिंधिया की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। वे प्रजातंत्र को एक प्रकार का 'वैलेंसिंग एक्टÓ मानते थे, जो प्रजा अपना मत देकर करती है। वे लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धान्तों पर सदैव चलते रहे और उसमें पूरा भरोसा अंत तक करते रहे। आजादी के बाद देश के अनेक राजे-रजवाड़ों के राजाओं एवं महाराजाओं ने राजनीति में प्रवेश किया। किन्तु वे भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में सामंजस्य न बिठा सकें! माधवराव ऐसा कर सके। उन्होंने समय की वास्तविकताओं को खुली आंखों से देखा और भविष्य को अतीत के हाथों गिरवी नहीं रखने दिया। माधवराव सिंधिया ने जनता की नब्ज के मर्म को समझा और राजसश्रा को लोकसश्रा में समाहित कर ''राजनैतिक-इतिहासÓÓ को नया पर्याय प्रदान किया।
माधवराव सिंधिया की राजनैतिक जीवन यात्रा सन् 1971 ई0 में गुना क्षेत्र से जनसंघ के सदस्य के रूप में लोकसभा का सदस्य बनने से हुई। वे पांचवीं लोकसभा से लेकर तेरहवीं लोकसभा तक नौ बार लगातार बिना पराजित हुए लोकसभा के सदस्य रहें। माधवराव सिंधिया राजनीति में सुचिता का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने सदैव मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित राजनीति को प्रश्रय दिया। सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के लिए सतही राजनीति को उन्होंने कभी नहीं अपनाया। 'साध्यÓ के साथ साधनों की पवित्रता में उनका अटूट विश्वास था, जिसे वे जीवन में अंगीकार करते थे। षड्यंत्रकारी राजनीति सिंधिया के स्वभाव में नहीं थी। दबाव और ब्लैकमेल जैसे शब्द उनके राजनीतिक शब्दकोष में नहीं थे। मूल्यहीन हो रही राजनीति का कु-चलन उन्हें कभी प्रभावित नहीं कर पाया। छल-कपट और उठापटक उनकी मंजिल के मील के पत्थर कभी नहीं बने।
माधवराव सिंधिया राजनीति में रहते हुए भी खेलों के प्रति हमेशा समर्पित रहे। उन्होंने खेल प्रशासक के रूप में देश-विदेश में खासी ख्याति प्राप्त की थी। माधवराव सिंधिया ने क्रिकेट, हॉकी सहित कई खेलों को अपना प्रत्यक्ष समर्थन दिया। उन्होंने संसद में रहते हुए भी खेलों की आत्मा को जीवित रखा और कई बार संसद की क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। वे स्वयं क्रिकेट, हॉकी, ब्रिज, गोल्फ आदि के अच्छे खिलाड़ी थे।
माधवराव सिंधिया ने भारत की केन्द्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहते, अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुए अनेक नवीन कार्यो को अंजाम दिया। एक प्रशासक और प्रबंधक के रूप में माधवराव हमेशा चुस्त-दुरुस्त रहते थे। कार्य संपादन की उनकी क्षमता अद्भुत थी। समय का प्रबंधन उनका गजब का था। उनका हर उद्देश्य साफ परिभाषित होता था। उन्होंने अपने कार्य करने के तरीके से मंत्रालयों में नवीन 'कार्य-संस्कृतिÓ को जन्म दिया। वे केन्द्र में रेल, नागरिक उड्डयन एवं पर्यटन तथा मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालयों में मंत्री रहे। रेल मंत्रित्वकाल में 1984-86 ई. तक राज्यमंत्री तथा 1986-89 ई. तक राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के दौरान उन्होंने रेलवे के आधुनिकीकरण की व्यापक एवं पन्द्रह वर्षीय योजना बनायी थी। रेलवे का कम्प्यूटरीकरण, विद्युत चलित रेलें, अधिक शक्तिशाली विद्युत रेल इंजन, आदर्श रेलवे स्टेशन, रेल लाइनों का विद्युतीकरण, नवीन रेल लाइनें तथा नयी पटरियों को बिछाना, रेलों में यात्रियों को अच्छी रेल सुविधा प्रदान करना, रेलों को समय से चलाना आदि सभी माधवराव सिंधिया की योजना में शामिल था।
माधवराव सिंधिया, 1991-1993 ई. तक नागरिक उड्डयन एवं पर्यटन मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने उड्डयन क्षेत्र के आधुनिकीकरण की योजना पेश की। हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण तथा मॉडल हवाई अड्डों का निर्माण, एअर इण्डिया के निजीकरण की योजना, खुला आकाश (ओपन स्काई) नीति आदि नवीन योजनाओं पर कार्य किया। देश में कुशल पर्यटक प्रबंधकों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर में 'भारतीय पर्यटन व यात्रा प्रबंध संस्थानÓ की स्थापना अपने कार्यकाल में करवायी।
माधवराव सिंधिया 1995-96 ई. में मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रहे। अपने मंत्रित्वकाल में उन्होंने मानव संसाधन के क्षेत्र अनेक युगान्तकारी कार्य किये। 'शिक्षा के सार्वभौमीकरणÓ जैसी महत्वाकांक्षी योजना उनके कार्यकाल में प्रारंभ हुई। प्राथमिक शालाओं में विश्व के सबसे बड़े कार्यक्रम 'मध्याह्न भोजन योजनाÓ उनके कार्यकाल में प्रारंभ हुई जिसमें प्रतिदिन देश के 12 करोड़ से अधिक छात्र-छात्राऐं नि:शुल्क भोजन करते है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 'महिला समृद्धि योजना एवं राष्ट्रीय महिला कोषÓ योजना प्रारंभ की गयी।
ऐसे महान नेता एवं पथप्रदर्शक सदियों में जन्म लेते है, कहा भी गया है कि,
''हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है।
तब कहीं जाकर चमन में ऐसा दीदावर पैंदा होता है।।
डॉ. आनन्द कुमार शर्मा
(लेखक ग्वालियर रियासत के आधिकारिक इतिहासविद् है)