भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन यौं तो सारी दुनिया में कर्म योगी, लीला पुरुषोत्तम कंस निकंदन श्री कृष्ण का जन्मदिन पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है किंतु मथुरा व ब्रज भूमि को भगवान श्रीकृष्ण की जन्म भूमि और लीला भूमि होने का गौरव प्राप्त है इस लिए यहां के जन्मोत्सव का उल्लास देखने योग्य होता है। आज के दिन न केवल देश के कोने-कोने से भक्त वृन्द मथुरा आते हैं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालुओं का आगमन होता है।
कवि सोम ठाकुर ने लिखा है
ब्रजधाम महा अभिराम
जहां घनश्याम से आनंद रासी भऐ
ब्रज व्योम के सोम गोविंद कलानिधि
राधिका प्रेम प्रकासी भए
हम कौंन से दान दऐ जो अभैं
नंदनंदन के अभिलासी भए
किंन पूरब पुन्य प्रतापन सौं
ब्रज में जन्मे ब्रजवासी भए ।।
ब्रजवासी कृष्ण जी को अपना सखा मानते हैं। आज के दिन ब्रज वासियों का आनंद असीम होता है।
सखा प्यारे कृष्ण के
गुलाम राधा रानी के।
मेरौ कान्हा गुलाब कौ फूल
किशोरी मेरी कुसुम कली।
आज के दिंन पूरी मधुपुरी यानी मथुरा की जगमगाहट देखते ही बन पड़ती है, नगर में शोभा यात्रा निकाली जाती हैं। स्थान स्थान पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। मीठे शरबत व केवड़ा, गुलाब जल आदि शीतल जल के प्याऊ लगाऐ जाते हैं। बाहर से आने वाला कोई श्रद्धालू अतिथि कहीं भूखा न रहे कहीं कोई प्यासा न रहे। योगेश्वर श्रीकृष्ण का चरित्र बहुआयामी है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, भक्ति, वात्सल्य , योग, भोग , दर्शन, राजनीति और दुष्टों का दलन करने के लिऐ कूटनीति इन सबका समावेश यदि ऐक ही चरित्र में किया जाए तो एक ही चित्र एक ही चरित्र हमारी अंतरात्मा में उभरता है और वह चरित्र है सम्मोहित करने वाले आनंद, आनंदकंद श्रीकृष्ण का।
यूं तो मथुरा के घर-घर में मंदिर हैं ठाकुर द्वारे हैं और सभी जगह जनमोत्स्व मनाया जाता है पर मुख्य आयोजन मंदिर श्री द्वारकाधीश व श्रीकृष्ण जन्म स्थान के भगवत भवन में आयोजित किए जाते हैंं। आइए पहले मंदिर श्री द्वारकाधीश की चर्चा करते हैं।
यमुना किनारे नगर के मुख्य बजार में मंदिर द्वारकाधीश देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना व अभ्यर्थना वल्लभ सम्प्रदाय की परंपराओं के अनुसार होती है। यहां श्रीकृष्ण बालरूप में हैं। यहां की आठौं याम की झांकियों के दर्शन बड़ी श्रद्धा भाव से किए जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन मंदिर के जगमोहन में हवेली संगीत शैली में पदगायन होता है- ब्रज भए मेहर के पूत। घंटे घडिय़ाल शंख ध्वनि और श्रद्धालुऔं के जयकारों के मध्य पंचगव्य सामग्री से अभिषेक किया जाता है। आनंद के इन पलौं का साक्षी बन कर श्रद्धालू आत्मविभोर हो जाते है।
द्वारकाधीश जी का विग्रह लश्कर ग्वालियर के पारखजी के बाड़े से ही मथुरा पंहुचाया गया था। विक्रम संवत 1871 आषाढ़ कृष्ण जन्माष्टमी1814 ई. जुलाई को विराजमान कर उनका पाटोत्सव मनाया गया।
आइए अब बात करते हैं मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म स्थान के भागवत भवन में आयोजित जन्मोत्सव की।
जन्म स्थान के पास ही कटरा केशव देव का मंदिर है। इतिहास वेत्ता व पुरातत्व विद इसी स्थान को भगवान कृष्ण की जन्म स्थली मानते हैं। यहीं पोतरा कुंड है। श्रीकृष्ण जन्म स्थान परिसर में गृभगृह, शिखर मंडप, योगमाया मंदिर, भाग्वत भवन, तथा केशव देव मंदिर आदि स्थित हैं। निरंतर सत्रह वर्ष तक चले निर्माण कार्य के पश्चात 12 फरवरी 1982 को भागवत भवन में श्री विग्रहौं की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई। भागवत भवन के निर्माण में सेठ श्री रामकृष्णजी डालमिया, महामना मदनमोहन मालवीय व कल्याण के यशस्वी संम्पादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का विशेष योगदान रहा है। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बैंकुठ से भी अधिक बताया गया है। इस दिंन प्रात: भगवान की मंगला आरती होती है, जन्म अभिषेक होता है। इसी दिन लीला मंच पर प्रयोजन लीला होती है। अर्थात प्रभु के अवतरण का प्रयोजन। धर्म संस्थापनार्थाय: संभवामि युगे युगे।
मुख्य कार्यक्रम रात्रि ग्यारह बजे से आरंभ होता है।सबसे पहले गणेश व नवग्रह पूजन होता है तदोपरांत गर्भ स्तुति का गायन होता है। रात्रि ठीक बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य दर्शन होते हैं।
भगवान के चल विग्रह को चांदी के तिष्ठा में शोभायमान कर पंचगव्य सामग्री से जन्म अभिषेक किया जाता है। पुरुसूक्त के मंत्रौं का उच्चारण किया जाता है। दुग्ध, दही, घृत , शहद शर्करा, यमुना जल गंगाजल से अजन्मा का जन्म अभिषेक। शंख ध्वनि नगाड़े नफीरी, नंद के आनंद भऐ जय कन्हैया लाल की के जयकारे, नृत्य गायन पूरा परिवेश अलौकिक अनंत आनंद से आत्मविभोर। ऐसा प्रतीत होता है जैसे तीनों लोकौं के देवी देवता इस परमानंद का लाभ पुन्य प्राप्त करने के लिए यहां आये हौं। ब्रज वनिताऔं की मधुर स्वर लहरियों से पूरा परिवेश आह्लादित हो उठता है।
आयी आयी नंदजू की पौर बधायौ लाई मालनियां।
भगवान कृष्ण की श्रंगार आरती होती है इस तरह सानंद श्री कृष्ण जन्मोत्सव संम्पन्न होता है। कोरोना के विश्व व्यापी संकट के चलते इस बार श्रद्धालुऔं का प्रवेश वर्जित है पर प्रभु दीनदुखियों के दुख दूर करने वाले हैं हमारे पालन हारे हैं
दरिद्र की जीर्ण जरा कुटीर में
किसान के श्यामल शस्य खेत में
दुखी जनौं की गहरी उसांस में हैं
झाकते श्री घनश्याम देखे।
इस तरह पूर्णावतार, रसावतार श्रीकृष्ण कि जन्मोत्सव पूरी श्रद्धा निष्ठा व भक्ति से मनाया जाता है।
(लेखक : यतींद्र चतुर्वेदी, आकाश वाणी के सेवानिवत्त कार्यक्रम अधिकारी हैं)