साम्राज्यवाद के विरुद्ध विश्व जनमत तैयार करने वाली क्रांति प्रसूता मदाम भीकाजी कामा

जयंती पर विशेष

Update: 2023-09-23 19:52 GMT

शिवकुमार शर्मा

यह भारतीय स्वतंत्रता का ध्वज है। मैं आप लोगों से निवेदन करती हूं कि असंख्य भारतीयों की स्वतंत्रता के प्रतीक इस ध्वज का अभिवादन कीजिए। इस ध्वज के माध्यम से मैं दुनिया भर के स्वतंत्रता-प्रेमियों से इस ध्वज का साथ देने का निवेदन करती हूंÓ यह आव्हान साहसी, निडर और दृढ़ संकल्पी स्वतंत्रता सैनानी मदाम भीकाजी कामा ने वर्ष 1907 में जर्मनी के स्टूटआर्ट नगर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में दुनिया के विभिन्न देशों से आए हजारों प्रतिनिधियों के समक्ष पहली बार तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज फहराने की पूर्व किया। उनके तेजस्वी व्यक्तित्व तथा ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर ध्वज को सभी ने नमन किया। तत्पश्चात मदाम कामा ने सम्मेलन में भारत के पक्ष को दृढ़ता पूर्वक रखा। यह राष्ट्रीय ध्वज वीर सावरकर तथा कई अन्य राष्ट्र भक्तों द्वारा मिलकर तैयार किया गया था। यह ध्वज इंदुलाल याग्निक द्वारा ब्रिटिश भारत में तस्करी कर लाया गया था जो पुणे में मराठा और केसरी लाइब्रेरी में है।

मैडम भीकाजी का जन्म 24 सितंबर 1861 को गुजरात के नवसारी में प्रतिष्ठा संपन्न व्यापारी सोराबजी फ्रॉम जी पटेल माता जैजी बाई के यहां हुआ था। आरम्भिक शिक्षा 'अलेक्जेंड्रा पारसी गर्ल्स स्कूलÓ में हुई। उस समय भारतीय समाज की परिस्थितियों प्रतिकूल थी। देश गुलामी के दंश झेल रहा था। भीकाजी की समझ इस दिशा में बढ़ती गई और वे बचपन से ही आजादी के बारे में चिंतन करने लगीं। पिता उनके इस कार्य से चिंतित हुए तो 3 अगस्त 1884 को प्रसिद्ध वकील रुस्तम के.आर.कामा से विवाह करा दिया। पति निहायत अंग्रेज भक्त और भीकाजी अंग्रेजों की कट्टर विरोधी, वैचारिक असमानता के कारण सम्बन्धों में दरार पड़ गई। परिवार टूट गया। मैडम कामा ने राष्ट्र सेवा की राह पकड़ी। 1886 में मुंबई में पहले प्लेग में हजारों लोगों की जान बचाई। स्वयं संक्रमित हो गई। उपचार से जान तो बच गई परंतु खोया स्वास्थ्य वापस ना मिल सका। उपचार के लिए 1902 में यूरोप गयीं।1905 में लंदन पहुंची, वहां दादा भाई नौरोजी से भेंट हुई डेढ़ वर्ष तक उनके नीचे सचिव के रूप में कार्य किया इस दौरान श्याम जी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, सरदार सिंह राणा जैसे क्रांतिकारी देश भक्तों से भेंट हुई। इसी दौरान वक्तत्व कला के निखार का अवसर मिला तथा श्याम जी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित इंडियन होम रूल लीग से जुड़ी तथा पत्र ,'द इंडियन सोशियोलॉजिस्टÓ के लिए लेख लिखें। लंदन में रहकर देशभक्ति पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन किया। पेरिस चली गईं। वीर सावरकर की पुस्तक 1857 का स्वतंत्रता संग्राम प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया बरतनी सरकार ने पुस्तक प्रतिबंधित कर दी कम जी ने घोषित किया कि प्रतिबंधित पुस्तक की प्रतियां मेरे पेरिस के अधिवास पर उपलब्ध होंगीं। पेरिस में उन्होंने मुंचरशाह बुर्जोरजी गोदरेज के साथ मिलकर 'पेरिस इंडियन सोसाइटीÓ की स्थापना की यूरोप के समाजवादी समुदाय में उनका खासा प्रभाव था। क्रांतिकारी विचारों के प्रसार के लिए 'वंदे मातरमÓ, तथा मदनलाल ढींगरा जी की स्मृति में 'मदन तलवारÓ नामक पत्र 1909 में आरंभ किया। गोपनीय तौर पर पांडिचेरी फ्रांसीसी उपनिवेश के जरिए प्रतियां भारत भी पहुंचाईं। 1910 में साबरकर जी का स्वास्थ्य बिगड़ने पर पेरिस में मैडम कामा के यहां रहे। उन्होंने उनकी दो माह तक सेवा कर दूसरी मां की भूमिका निभाई। साम्राज्यवाद की घोर विरोधी और लैंगिक समानता की समर्थक मदाम कामा ने लंदन, जर्मनी, अमेरिका और फ्रांस में रहकर भारत की आजादी के लिए विश्व जनमत तैयार किया तथा विदेश में रहकर भारतीय क्रांतिकारियों की भरपूर मदद की। उनके ओजस्वी भाषण तथा लेख क्रांतिकारियों में प्रेरणा भरने वाले थे। वे अस्वस्थ हालत में भारत लौट सकीं। मुंबई के पेटिट अस्पताल में आठ माह इलाज चला।अंतत: 13 अगस्त 1936 को 'भारतीय क्रांति की माताÓ कहीं जाने वाली मदाम भीकाजी नश्वर काया छोड़ गयीं।

(लेखक महिला एवं बाल विकास विभाग मप्र में संयुक्त संचालक है)


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