छात्र ही भविष्य की छाया और छत होते हैं। विद्यार्थी जीवन में युवा जो ज्ञान अर्जित करते हैं, राष्ट्र का निर्माण भी उसी से संचालित होता है। इसलिए आज के खास दिन यानी 'इंटरनेशनल स्टूडेंट्स डेÓ पर उनकी उपलब्धियों को हमें याद करना चाहिए। हालांकि, छात्र जीवन की कठिन यात्राओं को हम सभी पूरा किए होते हैं। इसलिए उस दौर के संघर्ष, चुनौतियों, परेशानियों व तप-तपस्याओं को अच्छे से महसूस कर पाते हैं। निश्चित रूप से स्टूडेंट्स न सिर्फ किसी एक मुल्क, बल्कि समूचे संसार के भविष्य निर्माता होते हैं। बदलते नए युग की संरचना उन्हीं के कांधों पर टिकी है। पढ़-लिखकर छात्र ही छायादार वृक्ष बनते हैं, जिनकी ठंडक में आने वाली पीढ़ी अपना समय गुजारती है और जो आगे चलकर देश और दुनिया का नेतृत्व भी करते हैं। छात्रों के तजुर्बे और ज्ञान पर हर देश का विकास टिका होता है। ताजा उदाहरण चंद्रयान-3 की सफलता है। इसके अलावा चिकित्सकों द्वारा चमत्कारी इलाज हो, आधुनिक युग में होते नित नए-नए आविष्कार हां, ये तमाम कारनामे छात्रों की पूर्व की प्रतिमूर्ती से ही संभव होते हैं।
21 सदी की अगर बात करें तो छात्रों के लिए अब वक्त बदल चुका है। देश-दुनिया की जितनी भी यूनिवर्सिटीज हैं, हर जगह छात्रसंघ के चुनाव होते हैं जिनसे छात्रों के पास बहुत से मौलिक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। अपने मसले वो खुद सुलझा लेते हैं। बावजूद इसके समूची दुनिया में सालाना 17 नवंबर को 'अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवसÓ मनाया जाता है जिसका मकसद होता है कि छात्रों की उपलब्धियों की सराहना की जाए और उनके मनोबल को बढ़ाया जाए। आज के खास दिवस को संसार भर के छात्र अपने शिक्षण संस्थानों में विभिन्न तरीकों से पूरे उमंग-उत्साह के साथ मनाते हैं। इस उत्साह में उनके साथ उनके शिक्षक भी शामिल होते हैं।
बहरहाल, असल मायनों में अगर देखें, तो छात्रों का स्वरूप मौजूदा समय में दो भागों में बंटा हुआ है। कह सकते हैं इसमें भेदभाव होने लगा है। हिंदुस्तानी परिवेश की जहां तक बात है, तो हमारे यहां दो श्रेणियों के छात्र होते हैं। अव्वल, सरकारी स्कूलों के, तो दूसरे निजी स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स। दोनों की शिक्षाएं आपस में मेल नहीं खाती। निजी स्कूलों के छात्र तकरीबन अंग्रेजी ही पढ़ते हैं, जिनका एक अलहदा स्टेटस सिंबल होता है। वहीं, सरकारी स्कूलों के अध्ययनरत छात्रों को पिछड़ा माना जाता है। लेकिन, बदलते समय में यहां के छात्रों ने सबकी सोच को बदल डाला है। एपीजे अब्दुल कलाम हों, कल्पना चावला हों या आला दर्जे के वैज्ञानिक, इन्होंने शुरूआती शिक्षा भी सरकारी पाठशालों से ही प्राप्त की। कहते हैं कि हुनर सभी भेदभाव मिटा देता है। ऐसा ही कारनामा अब सरकारी छात्र दिनों दिन कर रहे हैं। कहने को तो शिक्षा स्टूडेंट्स के बीच बहु-संस्कृतिवाद, विविधता और सपोर्ट का जरिया होती है, पर फर्क अब भी बहुत है। इंटरनेशनल छात्र दिवस क्यों मनाया जाता है? इसे भी समझना जरूरी होता है। दरअसल, इस दिवस की हिस्ट्री एक छोटे से मुल्क चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग से उत्पन्न हुई थी।
बात सन् 1939 की है। जब, चेकोस्लोवाकिया के कुछ हिस्सों पर नाजियों का जबरन कब्जा हुआ करता था। वो छात्रों की शिक्षा से परहेज करते थे, लेकिन छात्र पढ़ना चाहते थे। तब, प्राग के छात्र और वहां के शिक्षकों ने नाजियों के विरूद्व एक बड़ा अभियान छेड़ा। उस दौरान नाजियों द्वारा ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गईं, जिसमें प्रदर्शनकारी एक स्टूडेंट की शहादत भी हुई। प्रदर्शन उसके बाद भी जारी रहा। बल्कि और उग्र हुआ। आज ही के दिन यानी 17 नवंबर, 1939 को नाजी सैनिकों ने लगभग बारह सौ छात्रों को जबरन गिरफ्तार भी किया, जिनमें से नौ छात्रों को फांसी दी गई। इसके बाद विरोध में वहां के सभी शिक्षण संस्थानों को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया। फिर नाजियो ने घुटने टेक दिए, छात्रों की मजबूत एकता के सामने उन्हें झुकना पड़ा, उन्होंने तर्क दिया कि इससे छात्रों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। तभी से उन बहादुर छात्रों के संघर्ष को याद रखने के लिए आज का खास दिवस मनाया जाता है। आज भी जब कहीं स्टूडेंट यूनियन अपनी मांगों को लेकर आवाज बुलंद करती हैं, तो प्रशासन को झुकना पड़ता है। हालांकि, अब प्रत्येक विश्वविद्यालयों में छात्र संगठन के चुनाव होते हैं जिसके जरिए वह अपनी मांगें मनवाने में कामयाब हो जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)