एक बंगला बने न्यारा, जो नेताजी को लगे प्यारा

आलोक मेहता

Update: 2023-05-02 13:49 GMT

वेबडेस्क।  यह बहुत पुराना प्रसिद्ध गीत है- 'एक बंगला बने न्यारा। मुख्यमंत्री  के बंगलों के शुभ अशुभ होने, बदलने की चर्चाएं विभिन्न राज्यों में होती रही हैं। लेकिन इन दिनों दिल्ली और तेलंगाना के मुख्यमंत्री  केसरकारी बंगलों के निर्माण कार्य गंभीर विवाद के मुद्दे बन गए हैं। पत्रकारिता में लंबे अर्से से जुड़े रहने के कारण मुझे देश के कई मुख्यमंत्रीओ  से उनके निवास पर मिलने और बातचीत के अवसर मिले हैं। इनमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री  गोविन्द नारायण सिंह, श्यामाचरण शुल, अर्जुन सिंह, शिवराज सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री  ठाकुर, भागवत झा आज़ाद, सत्येंद्र नारायण सिंह, नीतीश कुमार, उत्तर  प्रदेश के मुख्यमंत्री  नारायण दत्त  तिवारी, मुलायम सिंह यादव, राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत, हरिदेव जोशी, वसुंधरा राजे,आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू  नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री  रामकृष्ण हेगड़े भी रहे हैं।

मतलब विभिन्न अवधि में रहे मुख्यमंत्री  निवास में सोफे, पर्दे, दीवारों की पुताई के रंग या थोड़ी मरम्मत और एकाध बाहरी कार्यालय कक्ष का निर्माण देखा है। गोविन्द नारायण सिंह तो आई सी एस करने के बाद राजनीति में आए और कुछ अन्य राजसी संपन्न परिवारों की पृष्ठ्भूमि से थे। राजसी परिवारों से महाराजा डॉटर कर्णसिंह और कुंवर नटवर सिंह (आईएफएस) राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर रहे, लेकिन उनके सरकारी निवास में भारी बदलाव या भव्यता नहीं दिखी। वर्तमान मुख्यमंत्री  में ओडि़सा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक संपन्न राजनीतिक परिवार से हैं। उनके पिता बीजू पटनायक देश के शीर्ष नेता रहे हैं। नवीन पटनायक करीब 22 वर्षों से मुख्यमंत्री  पद पर हैं। लेकिन सरकारी बंगला लेने के बजाय अपने पुराने निजी निवास पर ही रहते हैं। आज भी उनके कार्यालय जाने वाले पत्रकार यह देख सकते हैं कि उनकी पुरानी कुर्सी का लेदर कवर भी थोड़ा फटा हुआ है। मंत्रियों के साथ बैठक के बड़े कमरे में पुरानी नई टाइल्स लगी देख अटपटा लगता है। लेकिन नवीन बाबू ने अधिक बदलाव नहीं होने दिया। अपनी पुरानी मारुति स्टीम कार भी वर्षों तक उपयोग करते रहे और कुछ समय पहले भारी वर्षा के दौरान वह कार रास्ते में बंद होकर बैठ गई, तब अधिकारियों ने कार बदलने के लिए कहा तो किसी बड़ी एसयूवी के बजाय नवीन पटनायक मारुति सुजुकी एस एस 4 लेने को तैयार हुए। उनका लक्ष्य प्रधान मंत्री की दौड़ में रहने के बजाय अपने प्रदेश की जनता के लिए अधिकाधिक काम करने का रहा। तभी तो ओडिसा की निरंतर प्रगति हो रही है और नसल उग्रवाद की समस्या भी लगभग नियंत्रित हो गई।

नवीन बाबू की तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी ने सरकारी बंगले के बजाय अपने पुराने पारिवारिक निवास में रहने का फैसला किया और उसमें भी कोई नई साज सज्जा नहीं की। इस पृष्ठभूमि में राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बंगले की मरम्मत के नाम पर पुनर्निर्माण पर करीब 45 करोड़ रूपये खर्च किए जाने की सनसनीखेज रिपोर्ट सामने आने से हंगामा हो गया है। हाल ही में एक न्यूज़ चैनल टाइम्स नाउ नवभारत के हवाले से रिपोर्ट सामने आई कि दिल्ली के मुख्यमंत्री  ने अपने घर के नवीनीकरण पर लगभग 45 करोड़ का खर्च किया है। पीडब्ल्यूडी  दस्तावेज़ों में इस रिनोवेशन से जुड़ा जो ब्योरा दिया गया है उसके अनुसार, सिविल के अलावा आवास पर बिजली, पल्मिंग के काम, अलग-अलग स्मार्ट लाइट के लिए वोल्टेज फि़सर, एनर्जी सफि़शिएंट 80 पंखे, एक डंबवेटर लिफ्ट  (खाना पहुंचाने वाली लिफ्ट ), 23 पर्दे शामिल हैं। आम आदमी पार्टी का कहना है ये घर मुख्यमंत्री का अपना घर नहीं है बल्कि सरकारी आवास है, और ये ख़र्च सरकारी संपत्ति  पर ही किया गया है। पीडब्ल्यूडी  ने आकलन किया और ऑडिट के ऑर्डर दिए, इस ऑडिट रिपोर्ट में नया घर बनाने की सलाह दी गई। खर्च का एक बजट बना और उसे वित्त विभाग ने मंजूरी दी।

अधिकारियों का कहना है कि सीएम के घर पर 30 करोड़ रुपये ख़र्च किया गया और बाकी के पैसे सीएम आवास के कपाउंड में स्थित उनके कैंप ऑफि़स में लगाए गए। असल में इस बंगले और खर्च पर विवाद इसलिए उठा, योंकि अरविन्द केजरीवाल राजनीति में सादगी, ईमानदारी के लिए हुए अन्ना आंदोलन से दिल्ली के नेता बने। आम आदमी पार्टी बनाकर सत्ता  में आने पर वर्ष 2013 में कहते थे- सरकारी घर, सुरक्षा और सरकारी गाड़ी नहीं लेंगे। जब उन्हें पांच कमरों वाला फ्लेट आवंटित हुआ तो उन्होंने उसे लेने से इंकार किया। छोटे बड़े मकान को लेकर एक महीने तक नाटकबाजी हुई। फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पास तिलक लेन में तीन बेडरूम वाला ग्राउंड फ्लोर  का मकान स्वीकार किया, जिसमें लोगों से मिलने जुलने के लिए लॉन भी था। कुछ वर्षों में राजनीति में उनकी सफलता बढऩे लगी, दुबारा दिल्ली का चुनाव जीता। तब पुराने दिल्ली सचिवालय के पास मुय सचिव या मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित एक पुराना बड़ा बंगला उन्हें मिला। इसी बंगले की मरम्मत के लिए कोरोना संकट के दौरान सन 2020 - 21 में भारी खर्च से बंगले का पुनर्निर्माण हुआ। दिल्ली और पंजाब की चुनावी सफलताओं और राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मिलने के बाद केजरीवाल के समर्थक उन्हें भावी प्रधानमंत्री के दावेदार की तरह पेश करने लगे।

भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध प्रतिपक्ष के गठबंधन के लिए वह सक्रिय हो गए हैं। यों आंदोलनों से निकले वह अकेले मुख्यमंत्री  नहीं हैं। तेलंगाना आंदोलन से सत्ता में आए मुख्यमंत्री  के चंद्रशेखर राव भी प्रतिपक्ष के गठबंधन और प्रधान मंत्री का सपना संजोने के साथ अपने भव्य बंगले को लेकर विवादों में रहे हैं। के चंद्रशेखर राव ने तो करीब 9 एकड़ क्षेत्र में लगभग 50 करोड़ की लागत से भव्य सरकारी बंगला बनवाया। तेलंगाना राज्य का गठन होने से पहले आंध्र के तत्कालीन  मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी द्वारा करीब 10 करोड़ की लागत से बना बंगला चंद्रशेखर राव को पसंद नहीं आया। इसका एक और कारण ज्योतिष, वास्तु से बेहद प्रभावित राव की यह धारणा थी कि वह बंगला शुभ नहीं है। नए आलीशान बंगले का बाथ रुम भी बुलेट प्रूफ बनाया गया है। बहरहाल केजरीवाल के साथ वह भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। उनकी बेटी पूर्व सांसद कविथा दिल्ली की शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप के कारण सीबीआई जांच का सामना कर रही हैं। मुख्यमंत्री  के बंगले को लेकर केरल के मार्सवादी कम्युनिस्ट  नेता मुयमंत्री पियरन विजयन को भी प्रतिपक्ष की कांग्रेस पार्टी ने विरोध में आवाज उठा दी। लेकिन यह अन्य मुख्यमंत्री  से बिल्कुल विरोधाभासी है। विजयन के पुराने सरकारी बंगले पर मात्र एक करोड़ रुपये खर्च होने पर कांग्रेस आपत्ति कर रही है। जबकि केजरीवाल या राव के बंगलों के खर्च पर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता अधिक नहीं बोल रहे हैं। कांग्रेस तो राहुल गाँधी के क़ानूनी कारणों से संसद की सदस्यता खोने पर सरकारी बंगला खाली किए जाने को बड़ा आदर्शवादी कदम बता रहे हैं। यह बात अलग है कि अब राहुल गाँधी सहित प्रतिपक्ष के प्रमुख नेता 2024 के चुनाव के बाद संसद भवन के पास बनने वाले नए सरकारी प्रधान मंत्री निवास में रहने के सपने देखने लगे हैं।

( लेखक आई टीवी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और आज समाज के सपादकीय निदेशक हैं )

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