बागेश्वर धाम : एक सच यह भी है

नौजवान के मुखारविंद ने राष्ट्रवाद की अग्नि को सोते हुए समाज के हृदय में दबी चिंगारी को ज्वाला का रूप दिया

Update: 2023-01-21 16:18 GMT

छतरपुर, मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में स्थित एक जिला। यहां मुख्य सड़क से लगभग 6 से 7 किमी अंदर बसा एक गांव है गड़ा। इस गांव में स्थित हनुमान मंदिर का नाम है बागेश्वर बालाजी मंदिर, जो अब प्रसिद्ध धाम बन चुका है। इस गांव से निकले ठेठ बुंदेलखंडी युवा ने पूरे देश में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, सनातन संस्कृति और धर्म का ढंका बजा दिया है। 26 साल के इस गौरवर्णीय युवा का नाम है धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री।

आज से चार पांच साल पहले तक धीरेन्द्र, उनके गांव गड़ा और बागेश्वर बालाजी को देश में कोई नहीं जानता था। लेकिन आज ये युवा न्यूज डिबेट से लेकर अखबारी खबरों और सोशल मीडिया की सुर्खियों में है। देश विदेश में सनातन धर्म की अलख जगा रहा है। इस युवा की कथाओं की जो विशिष्ट बात है वह है हिंदुओं को एकजुट रहने का संकल्प दिलाना। बहकावे में हिंदू धर्म से विमुख हुए लोगों को पुनः धर्म में वापस लाना। राष्ट्रीय अस्मिता और धर्म पर प्रहार करने वालों की बुंदेलखंडी शैली में ही प्रखरता से व्यास पीठ से ही ठठरी बांधना। इसका प्रभाव अब यह है कि इनके कथा और दिव्य दरबार में लाखों हिंदू शामिल होने आ रहे हैं। रायपुर में चल रही कथा में चार लाख लोग एक साथ पांडाल में बैठकर उन्हें सुन रहे हैं।


लेकिन, जब से श्री श्री रामभद्राचार्य महाराज के इस शिष्य, कलयुग में सर्वाधिक पूजे जाने वाले भगवान श्री हनुमान जी के अनन्य भक्त और अपनी शास्त्र शिक्षा से रोचक अंदाज में कथा करते हुए इस युवा ने दमोह में ईसाई बने सैकड़ों लोगों को फिर से हिंदू बनाया, तबसे ये कथित प्रगतिशीलों, वामपंथियों और विज्ञानियों के निशाने पर हैं।

ऐसे ही एक तत्व हैं प्रोफेसर श्याम मानव। जो दावा करते हैं कि वो अपनी संस्था अखिल भारतीय अंधश्रृद्धा निर्मूलन समिति के द्वारा पाखंडियों के विरुद्ध अभियान चलाते हैं। उन्होंने नागपुर में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को चैलेंज दिया कि चमत्कार साबित करो और 30 लाख रुपए का इनाम पाओ। यह चैलेंज कथा समाप्त होने के समय दिया गया। दरअसल ये चेलेंज कम एक प्रोपेगंडा ज्यादा था, जिसका मकसद हिंदू धर्म और आस्था पर प्रहार करना ज्यादा था, इसमें लुटियन मीडिया और सोशल मीडिया पर सक्रिय टूल किट गैंग भी शामिल रही। दावा किया गया कि श्याम मानव के चैलेंज से डरकर बाबा भाग गए, उन पर एफआईआर दर्ज करा दी गई। हालांकि ये दावा खोखला साबित हुआ, और रायपुर में खुले मंच पर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने जब श्याम मानव के चैलेंज को स्वीकार कर ललकारा तो मानव शास्त्रार्थ और चमत्कार से भाग गए। वास्तव में चमत्कार होता है या नहीं यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन रायपुर के मंच पर एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के रिपोर्टर को जो अनुभूति हुई उसे सभी ने देखा है। लेकिन अभी विषय चमत्कार पर चर्चा का नहीं है, अभी विषय है हर बार की तरह इस बार भी हिंदू संत पर किए जा रहे सामूहिक हमले पर चर्चा का।

आपको मदर टेरेसा याद होंगी। अल्बेनीया में जन्मी एक लड़की आन्येज़े गोंजा बोयाजियू ने 1948 में भारतीय नागरिकता ली थी। वह रोमन कैथोलिक चर्च के संपर्क में आकर नन बनी। कलकत्ता के चर्च ने उसे मदर टेरेसा के नाम से नवाजा। भारत रत्न से लेकर नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ईसाई मिशनरी की पूर्ण कालिक मदर टेरेसा ने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटीज़, कालीघाट होम फाॅर डाइंग जैसी संस्थाओं के नाम पर सेवा की आड़ में कई हिंदुओं को ईसाई बनाया था।


अब चमत्कार देखिए कि 1997 में, यानी मौत के 5 साल बाद 2002 में मोनिका बेसरा नाम की एक लड़की ने दावा किया कि मदर टेरेसा की तस्वीर से निकली एक रोशनी से उसके पेट का ट्यूमर ठीक हो गया। इसके छह साल बाद 2008 में खबर आई कि मदर टेरेसा ने कोमा में जा चुके एक व्यक्ति को अपनी तस्वीर से जादूई शक्तियां भेज कर ठीक कर दिया। अब आप फर्क देखिए कि जो लुटियन मीडिया आज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के ऑन कैमरा दिख रहे अविश्वसनीय कमालों पर सवाल उठा रही है, वही मीडिया तब मदर टेरेसा को महिमा मंडित कर रही थी। चमत्कारों की खबरें फ्रंट स्टोरी हुआ करती थी। तब किसी डॉक्टर, तर्कशास्त्रि, समाज़ सुधारक, विज्ञानी, वामपंथी ने इस चमत्कार का कोई विरोध नही किया था।

मरने के बाद अपनी तस्वीरों से कमाल और चमत्कार करने वाली मदर टेरेसा को वेटिकन से संत की उपाधि मिली। यदि यह कहा जाए कि संत की उपाधि देने के लिए वेटिकन ने ये सारा पाखंड रचा था, तो विज्ञानियों और तर्कशास्त्रियों को इस पर आपत्ति नहीं होना चाहिए।

दुनिया के आधुनिक, प्रगतिशील, इंटरेक्चुअल, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले वेटिकन के एक भी अनुयाई ने इन चमत्कारों को ढकोसला नहीं बताया, न ही विरोध नही किया, बल्कि संत मान लिया। आज मदर टेरेसा मिशनरीज कल्चर से प्रभावित शिक्षित एक पीढ़ी का रोल मॉडल है। मिस इंडिया में भाग लेने वाली हर दूसरी लड़की उनके जैसा बनना चाहती है। उनकी जीवनी बस स्टेंड पर बिकती है। आज जो लोग धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का विरोध कर रहे हैं, वही मदर टेरेसा की प्रशंसा करके खुद को आधुनिक और लिबरल साबित करते हैं।


लिखने का तात्पर्य यह है कि अनेक लोग धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के दिव्य दरबार और चम्तकार के दावों से असहमत हो सकते हैं लेकिन किसी प्रोपेगंडा के चलते इकतरफा नैरेटीव बनाना तर्क संगत नहीं लगता। एक भारतीय होने के नाते हमें गहराई से इस तरह के विषयों और उसके पीछे काम कर रही मानसिकता को समझना चाहिए। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री चमत्कार करते हैं या नहीं? यह प्रश्न तब गौण हो जाता है जब हम सनातन के एक रक्षक की दृष्टि से उन्हें देखते हैं। एक गांव से निकले इस नौजवान ने सनातन को उच्च स्थान पर ले जाने, हिंदुओं को जगाने और देश को सशक्त बनाने का जो काम शुरू किया है वह असाधारण हैं। ऐसे में सनातन संस्कृति, धर्म, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के शत्रु उन पर हमले करेंगे ही। उन पर रंगदारी, ढोंग, कब्जे जैसे आरोप अभी तक लगाए जा चुके हैं। जैसे जैसे इस नौजवान के मुखारविंद से राष्ट्रवाद की अग्नि सोते हुए समाज के हृदय में दबी चिंगारी को ज्वाला का रूप देगी, वैसे वैसे हमलों का स्तर गिरता जाएगा। संभव है कि राष्ट्रवाद के इस समर में शत्रुदल युद्ध के नियमों से परे जाकर कमर के नीचे भी वार करे। 

लेकिन, जब तक धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री धर्म के रास्ते पर रहेंगे, जब तक वो धर्म को धंधा नहीं बनाएंगे, जब तक वो सनातन की बात करते रहेंगे, जब तक वो राष्ट्रवाद की अलख जगाते रहेंगे, तब तक हरेक सनातनी को उनका और उन जैसे हरेक राष्ट्रवादी का संरक्षण करना चाहिए, भले ही वो लौकिक अलौकिक चमत्कार जानता हो अथवा नहीं।

वैसे, लाखों लोगों से समवेत स्वर में कहलवाना कि "धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भाव हो। विश्व का कल्याण हो।" बस इतना चमत्कार ही काफी है।

Tags:    

Similar News