मध्यप्रदेश चुनाव में कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। ऐसे में उनके किसी भी कथन या कार्य को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उनका एक बयान कांग्रेस के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं। क्योंकि यह बयान कांग्रेस की चुनावी रणनीति की कलई खोलने वाला है। इस बयान ने कांग्रेस के भीतर और बाहर के फर्क को उजागर कर दिया है। बाहर वह अपने को हिंदूवादी रूप में प्रदर्शित कर रही है, लेकिन दीवारों के भीतर वह साम्प्रदायिक सियासत पर अमल कर रही है। इस तरह वह विधानसभा चुनाव की वैतरणी को दो नावों की सवारी से पार करना चाहती है।
वीडीओ से प्रमाणित हुआ कि कमलनाथ ने पार्टी मुख्यालय में मुस्लिम नेताओं की बैठक बुलाई थी। इसमें कमलनाथ ने मुसलमानों से नब्बे प्रतिशत वोट देने की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि इतने वोट न मिले तो मुश्किल होगी। कमलनाथ यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी निशाने पर लिया। उनसे सावधान रहने के लिए कहा। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से पिछले चुनावों में मुसलमानों के वोट का हिसाब लगाने को कहा। उन कारणों का पता लगाने को कहा, जिसके कारण मात्र पचास से साठ प्रतिशत मुसलमानों ने ही वोट दिया था। कमलनाथ यह कहते सुने गये कि पिछला रिकॉर्ड देख लीजिए। संघ के कार्यकर्ता सक्रिय हैं। वह कह रहे हैं कि यदि हिंदू को वोट देना है तो हिंदू शेर मोदी को वोट दो। अगर मुसलमान को वोट देना है तो कांग्रेस को वोट दो।
इस प्रकार कमलनाथ साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन की सियासत करते दिखाई देते हैं। चुनाव में नेता अपने अपने ढंग से मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास करते है। लेकिन इतने दोहरे मापदंड मतदाताओं को धोखा देने वाले होते हैं। देश के पहले आमचुनाव के समय से मुसलमानों का समर्थन कांग्रेस को मिलता रहा है। अपवाद स्वरूप कुछ नए प्रयोग भी किये गए, लेकिन उंसकी मूल प्रवृत्ति में बदलाव नहीं हुआ। तुष्टीकरण की कांग्रेस की नीति भी यथावत चलती रही।
यूपीए सरकार के समय तो तुष्टीकरण की हदें पार की जा रही थीं। सरकार और संघठन के दिग्गज सभी इस अभियान में लगे थे। इतिहास में पहली बार हिन्दू आतंकवाद का शब्द चलाया गया। इसका श्रेय लेने में तत्कालीन सरकार के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे , पी चिदम्बरम, कपिल सिब्बल, कांग्रेस संगठन के दिग्विजय सिंह,आदि थे। इस हरकत का लाभ पाकिस्तान ने उठाया। जब उस पर इस्लामी आतंकवाद का आरोप लगता था, तब वह पलट कर भारत पर हिन्दू आतंकवाद का आरोप लगा देता था। उसने कई बार कहा कि भारत पहले हिन्दू आतंकवाद को रोके। इस तरह कांग्रेस के नेताओं ने पाकिस्तान का मनोबल बढ़ाया। विश्व में हिन्दू धर्म को बदनाम करने का प्रयास किया। कुछ लोगों को गिरफ्तार करके रखा गया। उनके खिलाफ कोई प्रमाण नहीं मिला। लेकिन कांग्रेस के लोग इनका नाम लेकर हिन्दू आतंकवाद का प्रचार करते रहे। बटाला मुठभेड़ पर किसके प्रति हमदर्दी दिखाई जा रही थी ,इसे पूरे देश ने देखा। राहुल गांधी ने कहा था कि हिन्दू आतंकवाद बहुत खतरनाक है। हिंदूवादी संघठनों की आलोचना करने का अधिकार कांग्रेस को भी है। लेकिन विश्व को हिन्दू आतंकवाद शब्द देना कांग्रेस का गुनाह था। आज जो रामभक्त बनकर चुनाव प्रचार कर रहे है ,उन्होंने सरकार में रहते हुए श्री राम को काल्पनिक बताया था। रामसेतु को तोड़ने का पूरा इंतजाम किया जा रहा था।
कांग्रेस के इन्हीं नेताओं ने विपक्ष में आने के बाद पैंतरा बदलना शुरू कर दिया। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का नया संस्करण दिखाई दिया। मंदिर जाने, पूजा करने पर आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन कांग्रेस ने अपनी चुनावी छवि बदलने के लिए इसका प्रयोग किया। राहुल गांधी मंदिर जाने लगे, उधर कांग्रेस प्रवक्ता उन्हें शिवभक्त और जनेऊधारी घोषित करने लगे। यह बदलाव स्वभाविक नहीं लग रहा था। छतीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी इसी ओढ़ी गई छवि को बनाये रखने की कोशिश होती रही। पहले गाय का नाम लेना गुनाह था, अब मध्यप्रदेश के कांग्रेस चुनाव घोषणापत्र में गाय को बहुत महत्व दिया गया है। रामवन गमन यात्रा मार्ग के निर्माण की बात की गई। ये बात अलग है कि कांग्रेस के लोग कभी खुद यह यात्रा पूरी नहीं कर सके हैं।
यह कांग्रेस का बाहरी रूप था। भीतर की तैयारी वह थी, जिसे कमलनाथ ने जगजाहिर किया। इसका निहितार्थ यह हुआ कि कांग्रेस जब सत्ता में होगी, तो अपने पुराने रंग में ही कार्य करेगी, लेकिन विपक्ष में अपने को भक्त रूप में प्रदर्शित करेगी। कांग्रेस आज अपनी इस रणनीति पर खुश हो सकती है। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह दोहरी नीति के चलते हिन्दू और मुसलमान दोनों का विश्वास खो दे। कुछ भी हो, मध्यप्रदेश में कांग्रेस विश्वास के संकट का सामना कर रही है।