केंद्र सरकार, कन्या शिक्षा प्रवेश उत्सव और बच्चियों की जिंदगी में आता उजियारा
डॉ. निवेदिता शर्मा
वेबडेस्क। आधुनिक भारत में स्त्री शिक्षा के लिए एक नई शुरूआत महाराष्ट्र से सावित्री बाई फुले ने 19वीं सदी में आरंभ की थी, 1848 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी। आधुनिक भारत के उस पहले खोले गए बालिका विद्यालय से लेकर आज तक देश भर में हजारों नहीं लाखों विद्यालय खुल चुक हैं। समय भी जैसे पंख लगाकर उड़ता रहा और देखते ही देखते 175 वर्ष भी बीत गए। पीढ़ियां गुजरने का अनुमान लगाएं तो इस बीच सात पीढि़यों का नवागमन हुआ, किंतु इसके बाद भी वर्तमान समय में स्त्री शिक्षा एक बड़ा विषय बनी हुई है। क्योंकि वह अभी भी पुरुष साक्षारता की तुलना में पीछे ही है।
देश में अनेक स्थानों पर पाया गया है कि बेटियां 12वीं ही नहीं पास कर पाती हैं। कहीं, आर्थिक संसाधन रोड़ा हैं, कहीं स्कूल की दूरी और कहीं माता-पिता का रोजगार के लिए पलायन करते रहने की मजबूरी, किंतु इन सभी कारणों से यदि कोई सबसे अधिक प्रभावित होता है तो वे हैं बच्चे। इसमें भी एक बेटी शिक्षित होना क्यों जरूरी है? वास्तव में इसकी गहराई को हम सभी को समझने की आवश्यकता है। किसी भी देश की लगभग आधी जनसंख्या महिलाओं की होती है और यदि इस आधी आबादी को निरक्षर या अशिक्षित छोड़ दिया जाये तो उस देश की प्रगति क्या और कैसी होगी यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।
इस विषय से संबंधित अब तक हुए सभी शोधों का निष्कर्ष एक ही है कि किसी भी परिवार में स्त्री के शिक्षित होने से संपूर्ण परिवेश बदल जाता है, परिवार में अच्छे गुणों का विकास होता है, बच्चों को छोटी-छोटी जानकारियों के लिए किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहना होता। पिता के पास में नहीं होने की स्थिति में मां एक गुरु की भांति उसकी समस्त जिज्ञासाओं को शांत कर देती है। संभवत: यही कारण भी हो जोकि एक बच्चे के लिए उसकी मां को उसके जीवन में प्रथम गुरु का स्थान परंपरा से दिया जाता रहा है । वैसे भी बच्चे किसी भी परिवार में पिता की तुलना में मां के पास ही ज्यादा रहते है, इसलिए भी एक स्त्री का शिक्षत होना आवश्यक है।
बच्चियों की शिक्षा को लेकर भारत में पिछले दशक की तुलना में इस बीते दशक में तेजी से परिवर्तन देखने को मिला है, यह परिवर्तन जैसे हर क्षेत्र में हो रहा है वैसे ही शिक्षा जगत में भी तेजी से होता हुआ दिखाई दे रहा है। परिवर्तन की इस बेला में निजि संस्थानों का जहां अपना महत्व है, वहीं नीतिगत रूप से शासकीय संस्थानों द्वारा समय-समय पर लिए गए निर्णय बहुत मायने रखते हैं। इस समय भारत भर में लगभग 60 स्कूल परीक्षा बोर्ड हैं, जो विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में कार्य कर रहे हैं। इसमें पाठ्यक्रम मानकों को संरेखित करना, ग्रेडिंग सिस्टम और मूल्यांकन के तरीके अभी भिन्न भिन्न हैं। किंतु मूल उद्देश्य तो सभी का एक ही है, शिक्षित भारत बनाने में अपना योगदान देना।
देखने में अब भी यही आ रहा था कि सब कुछ होने के बाद भी देश के अनेक प्रदेशों में बेटियां बढ़ाई को नियमित नहीं रख पा रहीं थीं। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार में जो पहल ''कन्या शिक्षा प्रवेश उत्सव'' नाम से अभियान के रूप में की थी आज उसके सार्थक परिणाम सामने आने से मन हर्षित है। पिछले एक वर्ष में ही योजना देश भर से उन तमाम बच्चियों को अपने साभ जोड़ने में सफल रही है, जोकि किन्हीं भी कारणों से अपनी शिक्षा को नियमित नहीं कर पाती थीं। इस क्षेत्र में केंद्र द्वारा खासकर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय एवं शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त समन्वय से इसे संचालित किया जा रहा है । अन्य राज्यों के स्तर पर देखें तो मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार और यूपी की योगी सरकार में इसमें अच्छा कार्य हुआ है।
अभियान का उद्देश्य 11-14 वर्ष आयु वर्ग की स्कूल न जाने वाली किशोरियों को शिक्षा प्रणाली में वापस लाना रखा गया है। जैसे कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के आधार पर स्कूल न जाने वाली लड़कियों के लिये एक संपूर्ण प्रणाली पर कार्य करना है। चार लाख से अधिक स्कूल न जाने वाली किशोरियों को स्कूल में नियमित अध्ययन के लिए भेजने का लक्ष्य इसका है और देश के 400 से अधिक ज़िलों में ''बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना'' के अंतर्गत नीचे तक पहुंच कर जागरूकता प्रदान करने के साथ उन्हें वित्तपोषित भी किया जा रहा है । साथ ही समग्र शिक्षा अभियान और आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्कूल न जाने वाली किशोरियों की काउंसलिंग एवं रेफर करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है ।
वास्तव में जब विश्व बैंक की एक रिपोर्ट यह कहती हो कि महिलाओं की साक्षरता दर में स्वाधीनता के समय भारत की स्थिति यह थी कि 11 में से केवल एक लड़की साक्षर थी, लगभग नौ प्रतिशत का यह आंकड़ा था जोकि वर्तमान में,बढ़कर 77% हो बया है, हालांकि अब भी यह पुरुष साक्षरता दर 84.7% से कम है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में महिला साक्षरता दर बेहद कम है। शहरी भारत में 84.11% की तुलना में ग्रामीण भारत में साक्षरता दर 67.77 प्रतिशत ही अब तक सामने आ सकी है। ऐसे में एक साल में एक लाख इस प्रकार की बेटियों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें शिक्षा से जोड़ना और शिक्षा का महत्व बताते हुए उनकी शिक्षा आगे सतत बढ़ती रहे इसके लिए उन्हें राजी बनाए रखना कोई छोटी सफलता नहीं है। उम्मीद करें ''कन्या शिक्षा प्रवेश उत्सव'' देश की बेटियों को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने में पूरी तरह से सफल सिद्ध होगी ।
(लेखिका मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य हैं)