सदाबहार अभिनेत्री रेखा पर फिल्माया गया यह गीत कोरोना महामारी के समय हमें हिम्मत देता है। परेशानियों से लडऩे का हौंसला देता है। रक्षाबंधन का पावन पर्व भी इस बार हमें उम्मीदों और उमंगों की आस के साथ मनाना है। मार्च महीने से शुरु हुआ कोरोना का संक्रमण हमारे स्वाभाविक जीवन, मेलजोल, सामूहिक आयोजनों, तीज त्यौहारों सबको परेशान किए हुए है मगर हम 130 करोड़ धैर्यवान भारतवासी अपनी इच्छाशक्ति के साथ इन संघर्ष भरे दिनों का भी डटकर सामना कर रहे हैं। हम जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए को जीने वाले लोग हैं। अच्छी बात है कि सावन के रिमझिम महीने ने जब हम सबके मन की चिंताओं और तपिश को कम किया है तो अब रक्षाबंधन का पावन पर्व हमारे द्वारे आ पहुंचा है। भाई बहन के प्रेम, स्नेह और आत्मीयता का यह पावन पर्व हम सबके घर परिवारों को रोशन करने आया है।
श्रावण मास की पवित्र पूर्णिमा पर पडऩे वाले रक्षाबंधन में इतना फीकापन हम सबने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। यह अधूरापन कोरोना के कारण है नहीं तो रक्षा बंधन आते ही हमारे मन भर वजन वाले मन हल्के हो जाया करते थे। इन त्यौहारों से एक निर्मलता घर आंगन में फैल जाया करती थी। मेंहदी, महावर चूडिय़ों की खुशबू और खनक बिखर जाया करती थी पर इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। त्यौहार की सजधज कम ही रहने वाली है। ऐसे समय में सुभद्रा कुमारी चौहान की राखी पर लिखी कविता याद आती है। पढ़कर लगता है इसी समय के लिए शायद उन्होंने यह कविता लिखी होगी।
मैं हूं बहन किंतु भाई नहीं है
है राखी सजी पर कलाई नहीं है
है भादो घटा पर छाई नहीं है
नहीं है खुशी पर रुलाई भी नहीं है।।
नहीं तो जब से त्यौहारों को समझने लगे है तब से हम बहनों का पूरा सावन का महीना राखी पर बने सुंदर-सुंदर गीतों को सुनकर ही गुजरता रहा है साथ ही इन गानों को सुनते-सुनते मायके की यादें ताजा हो जाती हैं। मां-पिता, भइया-भाभी, बहनों का प्यार, बचपन की सहेलियां, मायके की गलियां सब आंखों के सामने दृश्यमय होने लगता है और राखी के आते-आते तो मायके जाने की तीव्र हूक उठने लगती है। इन सबके बीच यदि मायके न जा पाएं ता कहीं जीवन में कुछ कम हो गया, रीत गया लगने लगता है। फिल्मी गानों के बोल भी तो ऐसे-ऐसे बनते रहे हैं कि उन्हें सुनकर मन मायके की ही गलियों में घूमने लगता, रमने लगता। सन् 1962 में आई फिल्म अनपढ़ का गाना जिसे लता जी ने गाया। उसके बोल हर रक्षाबंधन के दिन ताजे हो जाते हैं-
रंग बिरंगी राखी लेके आई बहना
राखी बंधवाले मेरे वीर
मैं न चांदी न सोने के हार मांगू
अपने भैया का थोड़ा सा प्यार मांगू।
बरबस ही इन दिनों होठों पर आने वाला गीत भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना भी लता जी ने ही गाया इसके साथ ही आज की परिस्थितियों में लोकगीतों में महिलाएं राखी के गीत गा रही हैं।
राखी तीज है आई, मनड़ा में उठे हिलोर
मैं कैसे जाऊं पीहर, कोरोना मचाए शोर
इस त्यौहार को लेकर पौराणिक कथाओं में बहन के मायके जाने या भाई को बहन के घर जाकर राखी बंधवाने के महत्व को बताया गया है। दोनों ही परिस्थितियों में यदि किसी कारण से बहन-भाई के बीच मनमुटाव या गलतफहमी होने से अनबन हो भी गई तो भी यह त्यौहार उस पवित्र रिश्ते को वापस जीवित करने का पर्व है। नि:संदेह हर भारतीय त्यौहार के शुरू होने के पीछे कुछ न कुछ इतिहास अवश्य रहा है। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहली राखी द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को उस समय बांधी जब शिशुपाल का वध करते समय सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा था तब द्रौपदी ने अपने आंचल से वस्त्र को फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांधा था। तब श्रीकृष्ण ने इस अपनेपन पर कहा था कि आज से मैं तुम्हारा ऋणी हो गया कल्याणी। श्रीकृष्ण ने तब द्रौपदी को प्रेम के इस बंधन को जीवन भर निभाने का वचन दिया था।
दूसरी एक और पौराणिक कथा भी रक्षाबंधन के संबंध में प्रचलित है। इस कथा के अनुसार राजा बलि श्रीहरि विष्णु भगवान के अनन्य भक्त थे। भगवान विष्णु राजा बलि की इस भक्ति को देखते हुए उनके राज्य की रक्षा करने की जिम्मेदारी खुद उठाने लगे और स्वधाम को छोड़कर राजा के महल में ही रहने लगे। लक्ष्मी जी को जब यह पता चला तो वे बलि राजा के दरबार में ब्राह्मण महिला के रूप में पहुंचीं और श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि से अपने पति को वापस ब्रह्म लोक ले जाने का आश्वासन ले लिया। तब से राखी पर भाई के घर जाकर राखी बांधने का महत्व है। रक्षाबंधन हमारे लिए जहां एक ओर पारिवारिक उत्सव है वहीं यह ऐसा सामाजिक उत्सव भी है जिससे जहां पारिवारिक रिश्ते तो सुदृढ़ होते ही हैं साथ ही लोक जीवन भी निखरता है। जब हम उन सब सम्माननीयों को रक्षासूत्र बांधते हैं जो अलग- अलग तरह से हमारे जीवन को सुखद और सुरक्षित बनाए हुए हैं चाहे वे सीमा की रक्षाओं के लिए खड़े देशभक्त सैनिक हों या पुलिस कर्मी, यातायात में सहायक हमारे भाई हों या विभिन्न क्षेत्रों में हमें सेवा देने वाले बंधु जैसे ऑटो रिक्शा चलाने वाले बंधु। हम सबके लिए इन सभी सहयोगियों को रक्षा सूत्र बांधकर कृतज्ञता प्रकट करने का भी रक्षाबंधन एक सामाजिक अवसर होता है पर इस बार का रक्षाबंधन हर मायने में अलग है। संक्रमण से बचने हमारे समक्ष कई चुनौतियां हैं, नागरिक जिम्मेदारियां हैं। ऐसे में कोरोना से बचने एक दूसरे से सामाजिक दूरी बनाकर रखना व जरुरतमंदों का सहयोग करना हमारा धर्म है। रक्षाबंधन पर कुछ लोगों के काम आना भी इस त्यौहार के आनंद को बढ़ा देगा।
इस त्यौहार पर हमें चीन का भारतीय सीमाओं पर अतिक्रमण के चलते चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए। रक्षाबंधन के समय हमें आत्मनिर्भर भारत का संकल्प गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की भी याद दिला रहा है। उन्होंने भी 1905 में बंगाल के विभाजन के समय बंग-भंग का विरोध करने के लिए रक्षाबंधन का सहारा लेकर लार्ड कर्जन का विरोध करने का निर्णय लिया था । तब उस समय लोग यह कहते हुए सड़कों पर उतरे कि-
सप्त कोटि लोफेर करुण क्रन्दन,
सुनेना सुनिल कर्जन दुर्जन।
ताई निते प्रतिशोध मनेर मतन करिल,
आमि स्वजने राखी बंधन।।
अर्थात इस रक्षाबंधन पर हम सभी संकल्प लें कि स्वाधीनता की यह ज्वाला हमारे मन में हमेशा जलती रहे और कर्जन रूपी प्रदूषित विकारों से हम हमेशा लड़ते रहें।
हम सब इस रक्षाबंधन पर स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को पूरा करने में अपना सक्रिय और आत्मीय योगदान दें। रोजमर्रा के जीवन में चीन में बना सामान खरीदने से पहले स्वदेशी का विचार करें। राखी या तो घर पर ही बनाएं या अपने आस-पास जो राखी बना रहे हैं उनसे ही खरीदें। बहनें संकल्प लें कि आज हम राखी बांधेंगी तो अपने भाई के हाथ में भारत की हम रक्षाबंधन के आनंद में आत्मनिर्भर भारत का राग गाएंगे और उसे हृदय में जिएंगे। इन शुभ संकल्पों के साथ राखी का यह पावन पर्व हमारे घर परिवार, खेत खलिहान, संपूर्ण देश में एक आनंद और उल्लासपूर्ण वातावरण का संचार करेगा।
- लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं