सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया विनोद दुआ पर दर्ज राजद्रोह का मामला, 1962 का ये निर्णय बना आधार
नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह की एफआईआर को निरस्त कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने अनुभवी पत्रकारों पर राजद्रोह का केस दर्ज करने से पहले हाईकोर्ट की स्पेशल कमेटी से मंजूरी की मांग को ठुकरा दिया है। जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया है।
विनोद दुआ की ओर से वकील विकास सिंह ने कहा था कि केंद्र सरकार की आलोचना करने के चलते उन्हें परेशान किया जा रहा है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर हम दुआ की दलील से सहमत हुए तो एफआईआर रद्द कर देंगे। कोर्ट ने कहा था कि विनोद दुआ को हिमाचल पुलिस के पूरक प्रश्नों के उत्तर देने की जरूरत नहीं है।विनोद दुआ के खिलाफ शिमला में भाजपा के एक नेता ने देशद्रोह का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई है। शिमला पुलिस ने विनोद दुआ को पूछताछ के लिए तलब किया था।
ये है मामला -
बता दें की दिल्ली में भी उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। 11 जून, 2020 को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मामले में जांच पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी।
इस वाद का मिला लाभ -
पत्रकार विनोद दुआ को 1962 में सुप्रीम द्वारा दारनाथ बनाम बिहार राज्य के वाद में दिए गए निर्णय का लाभ मिला। इस केस में न्यायालय ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कुछ कहने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। राजद्रोह का केस तभी बनेगा जब कोई भी वक्तव्य ऐसा हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा बढ़ाने का तत्व मौजूद हो।