सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेखक की कल्पनाशीलता बाधित नहीं की जा सकती
मलयालम उपन्यास मीशा के प्रकाशन पर रोक नहीं;
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम उपन्यास मीशा के प्रकाशन पर रोक की मांग खारिज कर दी है। याचिकाकर्ता का कहना था कि किताब में हिन्दू धर्म और हिन्दू महिलाओं के लिए अपमानजनक बातें लिखी गयी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेखक की कल्पनाशीलता बाधित नहीं की जा सकती। किताब के कुछ हिस्सों से बनी धारणा पर अदालत आदेश नहीं दे सकता है।
पिछले 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम दैनिक मातृभूमि को निर्देश दिया था कि वो उपन्यास मीशा के विवादित अंशों का अंग्रेजी अनुवाद कोर्ट में पेश करें।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें किताबों पर बैन लगाने की संस्कृति नहीं अपनानी चाहिए। इससे विचारों का प्रवाह प्रभावित होता है। कोर्ट ने कहा था कि अगर किताब में लिखी विषयवस्तु भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत नहीं आती हैं तो उन्हें बैन नहीं करना चाहिए।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और केरल सरकार ने याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए कहा था कि स्वतंत्र विचारों को दबाया नहीं जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया था कि उपन्यास मीशा में महिलाओं और खासकर हिंदू धर्म का अपमान किया गया है। मीशा नामक इस उपन्यास को युवा लेखक एम हरीश ने लिखा है। इस उपन्यास की रिलीज के पहले कुछ संगठनों ने जब केरल में आंदोलन किया तो हरीश ने इसकी रिलीज वापस ले ली। बाद में डीसी बुक्स नामक प्रकाशक ने इस उपन्यास को छापने के लिए हामी भरी। इस उपन्यास की छपाई 31 जुलाई को पूरी हो गई। इसके बाजार में आने से रोकने के लिए ये याचिका दायर की गई थी।