History of chambal: चंबल के डाकुओं का इतिहास, कौन से डाकू थे जिनके नाम से कांपता था चंबल

चंबल के इलाकों में भी डाकुओं को लेकर रहा है जहां फिल्मों में गब्बर सिंह जैसे अपना रौब दिखाकर लोगों पर हुकुम चलता था।

Update: 2024-05-30 16:28 GMT

History of chambal: डाकुओं का नाम तो आपने सुना होगा वहीं शोले फिल्म का गब्बर सिंह जिसका रुतबा इतना भयंकर की हर कोई थर- थर कांपने लगे। ऐसा ही आतंक चंबल के इलाकों में भी डाकुओं को लेकर रहा है जहां फिल्मों में गब्बर सिंह जैसे अपना रौब दिखाकर लोगों पर हुकुम चलता था वैसे ही चंबल के डाकू भी डकैती, अपहरण और डरा धमका कर लोगों को परेशान करते थे और चंबल के इलाकों पर राज करते थे। 

कैसे शुरू हुआ चंबल पर डकैतों का राज

चंबल घाटी पर डकैतों का राज सबसे ज्यादा जाना जाता हैं। चंबल घाटी के ये बीहड़ कभी डकैतों/बागियों के लिए अभयारण्य हुआ करते थे, जहां से वे डकैती, अपहरण और हत्याओं का ‘कारोबार’ चलाते है। कहना गलत नहीं होगा कि, हमेशा ही डकैतों के मामले में ऊर्वर रहा है। चंबल के डकैतों में यह खास बात थी कि यहां पर डाकू खुद को बागी कहना पसंद करते है। जो बिना मतलब के खुद में लोगों को परेशान करते है।

इन डाकुओं का राज रहा पुराना

चंबल के इन इलाकों में ऐसे ही भी बहुत से डाकू रहे जिनका नाम आज भी लोग जब सुनते हैं तो थर-थर कांपने लगते हैं। चलिए जानते हैं उनके बारे में...

1. डाकू मान सिंह :

चंबल के डाकुओं में से एक एक मानसिंह का नाम भी सबसे ज्यादा जाना जाता है जिसने वर्ष 1935 से 1955 के बीच 1, 112 डकैतियों की वारदातों को अंजाम दिया। जिसका राज भारत की आजादी से लेकर उसके बाद तक कायम रहा। मानसिंह को चंबल का बाहुबली डाकू कहा जाता है जिसने 182 हत्याएं की, जिनमें 32 पुलिस अधिकारी थे। डाकू मानसिंह का संबंध राजपूतों के घराने से रहा है। जिसे अपने पुत्रों, भाई और भतीजों की बदौलत चंबल के इलाके पर एकछत्र राज किया। मानसिंह कुख्यात ना होने की जगह दयावान था।जो गरीबों की सेवा में अमीरों को लूटकर गरीबों को सुखी करता था। वर्ष 1955 में सेना के जवानों ने मानसिंह और उसके पुत्र सुबेदार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी। मानसिंह की रॉबिन हुड छबि की वजह से यहां के लोगों ने उसके नाम पर मंदिर बनाया है।

2- पान सिंह तोमर 

बॉलीवुड फिल्म पान सिंह तोमर का नाम एक्टर इरफान खान की बॉलीवुड फिल्म पान सिंह तोमर की वजह से चर्चा में आया था। पान सिंह तोमर डाकू बनने से पहले रुड़की स्थित बंगाल इजीनियर्स में सुबेदार के पद पर तैनात था। बाद में उसका चयन भारतीय सेना के लिए हो गया, जहां उसका झुकाव खेलों के प्रति हुआ। उसने लंबी बाधा दौड़ में भी अपना नाम कमाया अब इतने अच्छे धावक होने वाले पान सिंह तोमर डकैत कैसे बने इसका किस्सा यह है कि सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद जब तोमर अपने गांव पहुंचा, तो वहां उसका विवाद बाबू सिंह के साथ हो गया, जिसने उसकी 95-वर्षीय वृद्ध मां के साथ धक्का-मुक्की की थी। जिस वजह से गुस्साए पान सिंह ने बाबू की हत्या कर दी। जिसके बाद खुद को बागी घोषित कर दिया।

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