बाल अधिकारों के लिए विदेशों से हमें सीखने की जरूरत नही:प्रियंक कानूनगो

चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 100वी संगोष्ठी सम्पन्न

Update: 2022-05-29 14:14 GMT

भोपाल। शिक्षा,श्रम और लैंगिक शोषण से जुड़े भारतीय कानूनों का मौजूदा स्वरूप दुनियां भर में सबसे अधिक प्रामाणिक औऱ असरकारक है, इसलिए इन बिषयों पर हमें विदेशों से सीखने की नही बल्कि विदेशियों को भारत से सीखने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने यह बात आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 100 वी राष्ट्रीय ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही।संगोष्ठी को भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर,एवं शिक्षा मनोवैज्ञानिक जे सी बौरासी ने भी संबोधित किया।


कानूनगो ने देश मे यूनिसेफ की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इस संगठन ने बाल सरंक्षण के क्षेत्र में स्थानीय पार्टनर एनजीओ के माध्यम से विदेशों में भारत के बचपन को प्रायोजित तरीके से अभिशप्त औऱ शोषित दिखाने का कार्य किया है।उन्होंने बताया कि यूनिसेफ मूलतः आपातकालीन सेवाओं के लिए गठित है लेकिन भारत में यह संगठन केंद्रीय स्तर पर विधान निर्माण और राज्यो में खुद की अगुआई में बने विधानों को क्रियान्वित करने में लगा है।कोविड महामारी में यूनिसेफ ने अपने स्थानीय पार्टनरों के माध्यम से झारखंड,उप्र एवं मप्र के उज्जैन से बच्चों के संवेदनशील डेटा को विदेशों में लीक कर करोड़ों रुपए की विदेशी सहायता अर्जित की।श्री कानूनगो ने बताया कि देश में बच्चों को गृहों में रखने की मानसिकता बालकों के सर्वोत्तम हित मे नही है इसलिए आयोग ने करीब डेढ़ लाख बच्चों का पारिवारिक सुमेलन कराया है।

भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय सँस्कृति औऱ लोकजीवन दुनियां में सबसे उदार और हर व्यक्ति के सर्वोत्तम विकास के अवसर सुनिश्चित करते है।दुर्भाग्यवश स्वाधीनता के बाद अपनाई गई शिक्षा और संस्कृति की राह भारत के स्वत्व को तिरोहित करने वाली रही है इसलिए आज सरंक्षण जैसे मानक आवश्यक हुए है।साध्वी प्रज्ञा सिंह के अनुसार मौजूदा दौर में पारिवारिक परिवेश भारतीयता केंद्रित होना समय की मांग है।भारतबोध के धरातल पर खड़ी शिक्षा भारत के भविष्य को निष्कंटक बनाने का सबसे सशक्त माध्यम है।उन्होंने कहा कि संस्कृत से सुशिक्षित बच्चे जहाँ विनम्र औऱ शीलवान होते है वहीं अंग्रेजी में ऐसे किसी आत्मतत्व को प्रकटीकरण की क्षमताएं नही है।उन्होंने चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की सतत 100 वी संगोष्ठी को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए बधाई दी।

शिक्षा मनोवैज्ञानिक एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी जे सी बौरासी ने कहा कि मैकाले की शिक्षा पद्धति ने 186 साल से देश के विकास को अवरुद्ध करने का काम किया।।नई शिक्षा नीति में पहली बार भारतीय स्वत्व केंद्रित शिक्षा पद्धति को अपनाने का संकल्प दिखाई दे रहा है।उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा से ही कृषि जैसे विषयों को शामिल किया जाना चाहिए।गणित,अंग्रेजी औऱ कॉमर्स जैसे विषयों के मौजूदा पाठ्यक्रम को भारतीय बच्चों के लिए उपयोगिता औऱ औचित्य के अनुरूप डिजाइन किया जाना चाहिए।

चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि हम उनके लिए काम करते है जिन्हें अपने भले बुरे का भान ही नही रहता है। मासूम बचपन वासना औऱ वात्सल्य में भेद नही कर पाता है इसलिए उनके लिए कार्य करने का कार्य का कार्य न केवल संवेदनशील है बल्कि ईश्वरीय साधना जैसा है।डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि 100 वी ई संगोष्ठी के बाद भी यह वर्चुअली प्रकल्प हमेशा निरंतरता के साथ अनवरत जारी रहेगा।डॉ शर्मा ने जोर देकर कहा कि जब तक भारत के हर बच्चे के सामने उसके मौलिक अधिकार को चुनौती मिलेगी तब तक चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की यह श्रंखला जारी रहेगी।

संगोष्ठी में मप्र,बिहार,असम,छत्तीसगढ़,हरियाणा,दिल्ली,कश्मीर,राजस्थान,झारखंड,गोवा,हिमाचल,उत्तराखंड,उप्र,चंडीगढ़ से बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।सेमिनार का संचालन फाउंडेशन के राष्ट्रीय सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने किया।उन्होंने पिछले सभी सेमिनार का ब्यौरा प्रस्तुत किया।

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