मंत्रालय में घूम रहीं 'अनुकंपा’ पाने वाले 'सौरभ शर्माओं’ की कुंडली: झूठे शपथ पत्र से अनुकंपा नियुक्ति घोटाले की गंभीर जांच जरूरी…

पांच भाई पहले से सरकारी नौकरी में, छठे ने भी हथिया ली नौकरी;

Update: 2025-03-12 07:05 GMT

विशेष संवाददाता, भोपाल। परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा द्वारा झूठा शपथ पत्र लगाकर अनुकंपा नियुक्ति पाने का मामला उजागर होने के बाद, शासन तक अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ शिकायतें पहुंचने लगी हैं जिन्होंने जानकारी या सत्य छिपाकर सरकारी नौकरी पा ली।

ऐसा ही एक मामला मंत्रालय के गलियारों में इन दिनों घूम रहा है। आरोप यह है कि उद्यानिकी विभाग में पदस्थ सहायक ग्रेड-3 सतीश शर्मा ने जानकारी छिपाकर अनुकंपा नियुक्ति पा ली। फाइलें बताती हैं कि सतीश शर्मा का मामला अपने आप में अनुकंपा नियुक्ति के गड़बड़झाले की एक केस स्टडी जैसा है।

दस्तावेजों के अनुसार सतीश शर्मा की मां भोपाल के रशीदिया स्कूल में भृत्य थीं। वर्ष 2000 में मां के निधन के बाद शर्मा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मंत्रालय में सहायक ग्रेड-3 में नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। मुख्यमंत्री ने 20 दिसंबर 2001 को विशेष प्रकरण मानकर शर्मा को कैबिनेट की मंजूरी की प्रत्याशा में नियुक्ति का निर्देश दिया।

सामान्य प्रशासन विभाग ने अनुकंपा नियुक्ति की फाइल चलाई। शपथ पत्र के आधार पर 22 जुलाई 2003 को कैबिनेट मंजूरी की प्रत्याशा में शर्मा को मंत्रालय में अनुकंपा नियुक्ति दे दी गई। बाद में शासन को पता चला कि शर्मा के 4 बड़े भाई शिवचरण शर्मा, किशन शर्मा, मोहन शर्मा और आशीष शर्मा पहले से सरकारी सेवा में हैं।

इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने नियुक्ति रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की। चूंकि मुख्यमंत्री के निर्देश से नियुक्ति हुई थी इसलिए शर्मा को हटाने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा गया। उसे दिग्विजय कैबिनेट ने यह कहकर लौटा दिया कि सामान्य प्रशासन विभाग नियमानुसार कार्रवाई करे।

फिर से फाइल भेजी गई तो तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी एवं अवनि वैश्य ने इस टीप के साथ उसे लौटा दिया कि पूर्व में कैबिनेट 'नियमानुसार कार्रवाई कर प्रकरण का निराकरण कर चुकी है।‘ मामला यूं ही फुटबॉल बना घूमता रहा।

15 मई 2012 को फिर कैबिनेट में आया और अंतत: शिवराज कैबिनेट ने विशेष प्रकरण मानकर सतीश शर्मा की अनुकंपा नियुक्ति को यथावत रखा।

गड़बड़ियों की गाथा है यह प्रकरण

दरअसल, तत्कालीन मुख्यमंत्री से लेकर कैबिनेट तक सतीश शर्मा ने सत्य छिपा कर यह नौकरी पाई। यह मामला 10 साल फाइलों में चला। हद तो तब हुई जब अंतत: सरकार ने तमाम तथ्यों को दरकिनार करते हुए अनुकंपा नियुक्ति को मंजूरी दे दी।

अब यह प्रकरण सत्य छिपाकर अनुकंपा या अन्य तरह से सरकारी नियुक्ति पाने वालों की ढाल बन सकता है। यह ऐसा अनूठा प्रकरण है, जिसमें 5 भाइयों के पहले से नौकरी में रहते अनुकंपा नियुक्ति दे दी गई। यह इस बात का भी उदाहरण है कि सरकार और प्रशासनिक तंत्र कैसे गुमराह होते हैं और गलती पता चलने के बाद भी उसे छिपाने के लिए किस तरह लीपापोती करते हैं।

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