मुरैना में 6 लोगों की हत्या से सदमे में परिवार, चार दिन बीतने के बाद भी कोई नहीं पहुंचा दुःख बांटने
लेपा गांव से लौटकर राजीव अग्रवाल/फूलचंद मीणा
मुरैना।नदी, बीहड़ और खिरक से घिरे मुरैना जिले के लेपा गांव में एक अजीब सी रहस्यमय खामोशी है। वहां के खेत खलिहान, पगडंडी और श्वान चार दिन पूर्व हुए 7 लोगों की हत्याकांड की कहानी बयां कर रहे हैं, जबकि गांव के लोग रहस्यमय खामोशी ओढ़े हुए हैं। वैसे मृतकों की संख्या प्रशासन ने 6 मानी है, लेकिन मधु के पेट में पल रहे 7 माह के पूर्ण भ्रूण के कारण मृतक संख्या 7 होती है।
दरअसल कहानी की शुरुआत अक्टूबर 2013 से शुरू हुई, जिसमें एक ही परिवार के दो सदस्यों वीरभान और सोबरन को गोलियों से भून दिया गया। बस उसी बात का बदला इन दोनों मृतकों के पुत्रों ने 5 मई को एक साथ सात लोगों को मौत की नींद सुलाकर लिया। जिसमें एक महिला मधु के पेट में पल रहा 7 माह का पूर्ण भ्रूण भी शामिल है। इस दिल दहला देने वाले हादसे में तीन महिलाएं विधवा हो गईं, वहीं तीन की पत्नियां संसार छोड़ गईं। खास बात यह है कि इन मृतकों की अस्थियां 6 मिट्टी के छोटे कुल्लड़ों में घर के बाहर नीम के पेड़ पर टांग दी गईं हैं। इन्हें विसर्जन कब किया जाएगा और मृतकों की आत्मा की शांति के लिए गंगभोज कब होगा यह बात परिवार का कोई सदस्य नहीं बता पा रहा। कारण स्पष्ट है कि लाचार और किसी का साथ नहीं मिलने से मजबूर परिवार के लोग बुरे दौर में हैं। दरअसल यह सभी लोग 10 वर्ष बाद अहमदाबाद से अपने पैतृक गांव यह सोचकर लौटे थे कि अब पुराना झगड़ा खत्म हो गया है, उन्हें कतई अंदेशा नहीं था कि दुश्मनों ने एक योजना के साथ उन्हें यहां बुलवा लिया और तो और इसकी भनक किसी को भी नहीं लगने दी गई।बस विश्वास में धोखा हुआ और उनके परिवार के सात लोग धूल धूसरित हो गए। अब हालत यह है कि गांव के लोग पीडि़त परिवार से दूरियां बनाए हुए हैं और घटना के बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि प्रशासन उनके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था कर रहा है।
ग्वालियर से लगभग 80 किलोमीटर दूर लेपा गांव में मंगलवार को स्वदेश की टीम पहुंची और मृतकों के परिजनों एवं गांव वालों से चर्चा की। उसी का दृश्यांकन यहां प्रस्तुत है।
आसन नदी के आसपास पूरे क्षेत्र में बीहड़ और खेत खलियान है। गांव तक पक्की सडक़ जरूर बन गई है, लेकिन आसपास किसी तरह की रिहाइश या बहुत आवाजाही दिखाई नहीं दी। गांव में प्रवेश के पहले पंचायत भवन और उसके सामने शहीद रंजीत सिंह उर्फ पप्पू की प्रतिमा मिली जो यह दर्शा रही थी कि इस गांव में सीमा पर शहीद हुए लोग भी रहते हैं। रास्ते में घर की चौपालों में भैंसें बंधी दिखाई दी जो रंभा रही थीं। कुछ एक ही घर होंगे जहां इंसान दिखे शेष में सन्नाटा पसरा हुआ था। थोड़ा आगे बढऩे पर जब एक स्थान पर कुछ लोग बैठे दिखाई दिए तो वहां वाहन खड़ा कराया। जब उनसे घटनास्थल व मृतकों के घरों का पता पूछा तो एक युवक आगे आया उसने हाथ से इशारा कर बताया कि उनके मकान थोड़ा आगे जाकर हैं। वह कुछ दूर साथ चला और बोला कि अब आप ही मृतकों के घर जाइए मैं वहां नहीं जा सकता। हम जैसे तैसे आगे बढ़े। एक मकान में कुछ महिला-पुरुष जमीन पर तिरपाल बिछाकर गमगीन हालत में बैठे हुए थे। कुर्सी पर एक थाना प्रभारी और आसपास पुलिस वाले थे। एक खाट पर नरेंद्र तोमर लेटे थे,जो कि एक पैर से अपंग हैं। इनकी पत्नी बबली गोलीबारी में मारी जा चुकीं हैं। इनके परिवार में दो बिटियां और एक पुत्र हैं। पास में ही राकेश तोमर, संध्या, शिवानी और घर के अन्य परिजन एवं कई बच्चे एक अजीब सी दहशत के बीच मौजूद थे। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो शुरुआत राकेश सिंह और नरेंद्र सिंह नेगी ने सारा घटनाक्रम बताया, जबकि आसपास मौजूद गांव के लोग हत्याकांड के बारे में कुछ भी बोलते नहीं दिखे। निश्चित ही उन्हें यह डर था कि चूंकि दोनों परिवार इसी गांव के हैं और यदि हम कुछ बोलते हैं तो दूसरा आरोपी परिवार उनसे दुश्मनी ठान सकता है।
संध्या और शिवानी के विवाह की चिंता
दरअसल अहमदाबाद में ही रह रहे नरेंद्र और उनकी पत्नी बबली ने अपनी दोनों बेटियों संध्या और शिवानी के विवाह राजस्थान के सैंपऊ में तय करते हुए विवाह की तिथि 23 जून 2023 तय कर दी थी, लेकिन हालात इस तरह करवट लेंगे और बबली दुनिया को छोड़ जाएगी यह किसी ने नहीं सोचा था। वैसे भी नरेंद्र एक पैर से अपाहिज होने के कारण कोई धंधा पानी नहीं कर पाते इसलिए बबली ही अहमदाबाद में मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण करती थी। दोनों युवतियां संध्या और शिवानी के चेहरे पर मां बबली के जाने का गम था, लेकिन 23 जून को होने वाले विवाह की चेहरे पर कोई खुशी नजर नहीं आई। वह आंखो में अश्रुधारा के साथ कहती हैं कि हमारी तो दुनिया ही उजड़ गई। अब अगले माह हम दोनों चले जाएंगे तो पिता और छोटे भाई का क्या होगा।
मधु के साथ सात माह की कोख भी उजड़ी
सुनील तोमर की पत्नी मधु की गोली लगने से मौत हो गई। और तो और जिस समय उसकी मौत हुई तब उसके पेट में 7 माह का गर्भ था, जिसे दुनिया में आने से पहले ही मौत ने आ घेरा। सुनील की गोदी में तीन वर्ष की बिटिया थी, जिसे अभी तक यह नहीं पता कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है। सुनील का यह सोचकर बुरा हाल है कि वह इसे किस तरह पालेगा।
पर्चियों पर लिखे हैं छह नाम
मृतकों के पैतृक घर के ठीक सामने एक नीम के पेड़ पर छह कुल्हड़ों में छह मृतकों की अस्थियां एक कपड़े में बांधकर लटकाई हुई हैं। परिवार के एक युवक ने वह थैली खोलकर हमें दिखाई। प्रत्येक कुल्लड़ में एक-एक पर्ची रखी हुई मिली, जिसमें मृतकों के नाम लिखे हुए हैं, ताकि यह पता रहे कि किसकी अस्थियां कौन सी है। जब उनके परिजनों से पूछा गया कि इन अस्थियों का विसर्जन क्यों नहीं किया जा रहा ? तब उन्होंने बताया कि अस्थियों का विसर्जन इलाहाबाद में होना है, लेकिन इन्हें ले जाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इसी तरह जब यह पूछा गया कि ब्रह्मभोज-गंगा पूजन कब करोगे? इसका जवाब भी वह ठीक से नहीं दे सके। एक सज्जन बोले कि शायद 17 या 18 को गंगा पूजन होगा। दरअसल मृतक परिवार की स्थिति नहीं है वह किसी तरह का खर्च कर सकें। फिलहाल उन्हें मानसिक एवं आर्थिक मदद की बेहद आवश्यकता है जो अभी तक उन्हें प्राप्त नहीं हो सकी है।
श्वान का अजीब रुदन
लेपा गांव में पहुंचते ही वाहन से उतरने के बाद एक श्वान पूरे समय हमारे साथ रहकर रुदन करता दिखा। हम जिस स्थान पर भी रिपोर्ट करने पहुंचे वह हमारे साथ था। इस दौरान पैरों में लोटकर और भौंखकर वह कुछ कहना चाह रहा था। उसके भौंकने पर आसपास के अन्य श्वान आकर उसकी घेराबंदी करते तो वह उन्हें भगा रहा था। अंत में जब हम वाहन में बैठकर वापस लौटे तो कुछ दूरी तक वह पीछे दौड़ा। निश्चित ही गांव वाले अपने मुंह से जिस घटना को बयां नहीं कर पा रहे वह बात बेजुवान श्वान कहना चाह रहा था, जिसे लोग नहीं समझ पा रहे थे।
हर परिवार से सीमा पर तैनात हैं जवान
चंबल की घाटी वीर शहीदों के लिए जानी जाती है। लेपा गांव में लगभग 15 लोगों की आबादी है। यहां के हर एक परिवार से एक जवान सीमा पर तैनात है। इसलिए यहां की मिट्टी वीर जवानों की सुगंध से भरी पड़ी है फिर भी सजातीय ही एक दूसरे के दुश्मन बनकर खून की होली खेलने में लगे हैं, जो लहू दुश्मन देशों के जवानों का बहना चाहिए वह गांव में बहनें से गांव के लोग बेहद आहत हैं, पर कुछ बोलने में असमर्थ हैं।
गांव में नहीं आएगा रंजीत, राजीनामा के बाद भी किया घात
रंजीत पुत्र मुन्नी सिंह तोमर के बात करने के दौरान आंखों में आंसू आ गए और रुंधे गले से रुआंसे होते बोला कि उसे इस बात का जब तक सांस है पछतावा रहेगा कि 5 मई को अपने परिवार के साथ लेपा गांव आ जाता तो आज शायद यह दिन ही नहीं आता और न ही उनके परिवार के छह लोग मारे जाते। दरअसल धीरसिंह तोमर, अजीत, भूपेन्द्र, बलराम, रज्जोदेवी, पुष्पाबाई और उनके परिजनों ने साफ कह दिया था कि रंजीत लेपा गांव में नहीं आएगा। गजेन्द्र सिंह तोमर ने अपने रंजीत को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वह लेपा गांव छोड़ दे। रंजीत ने वर्षों पुरानी दुश्मनी को मन से निकालकर गांव की अपनी हिस्से की एक बीघा जमीन भी बेच दी। गजेन्द्र सिंह ने आरोपी धीरसिंह तोमर और उनके परिजनों की बात पर यकीन कर लिया कि अब वह क्यों खून बहाएंगे जब दस लाख रुपए के करीब रकम, एक मकान और उनकी सभी शर्त मान ली। रंजीत ने बताया कि अरे ‘मान्स’ मार देते हमारी ‘जनीमांसन’ को भी नहीं छोड़ा। यह तो गांव बुलाकर घात किया है। यदि पहले से ही पता होता तो फिर हम तैयारी से नहीं आते। हमारे परिवार के साथ धीरसिंह अजीत, संजू, श्यामू और उनके परिजनों ने घात किया है। अरे गाड़ी से उतरते ही लाशें बिछा दीं। सब चंद मिनट में ही हो गया। जबकि लेपा गांव के लोगों का कहना है कि किसी को पता भी नहीं चल सका और इतना बड़ा हत्याकांड हो गया। जब बंदूकें चलने की आवाजें सुनाईं दी और ग्रामीण मौके तक पहुंचते देर हो चुकी थी। गजेन्द्र सिंह के घर के आगे छह लाशें पड़ी हुई थीं जबकि तीन लोग सिसक रहे थे।
जनप्रतिनिधि विमुख, सरकारी तंत्र सम्मुख
आज चम्बल संभाग ही नहीं मुरैना का लेपा- भिड़ौसा गांव के आधा दर्जन लोगों की जिस ढंग़ से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या की गई है, उसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। रंजना तोमर का बनाया गया वीडियो वायरल होने पर यह गांव और हत्याकांड चर्चा में है। स्वदेश संवाददाता जब लेपा गांव में पहुंचे तो गजेन्द्र सिंह तोमर का परिवार बरामदे में गमगीन मुद्रा में बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर भय और दहशत साफ देखी जा सकती थी। दिव्यांग सुनील तोमर, रंजीत तोमर, संध्या और शिवानी ने बताया कि पुलिस अधीक्षक, कलेक्टर तो गांव में आए थे, लेकिन कोई नेता या मंत्री हमारे दरवाजे तक इतने जघन्य हत्याकांड के बाद भी नहीं आया है। लेपा गांव में पसरे सन्नाटे को गजेन्द्र के घर से महिलाओं के रुदन की आवाज भले ही तोड़ रही हो, लेकिन गांव में यह सवाल लोगों की जुबान पर है कि आखिर नेताजी कहां चले गए। जनप्रतिनिधियों ने एक प्रकार से लेपा गांव से मुंह सा फेर लिया है जबकि उनके सम्मुख है तो वह पुलिस का पहरा या फिर प्रशासनिक कर्मचारी। दुख की इस घड़ी में गांव के लोगों ने तो साथ छोड़ा ही जो मामूली से कांड हो जाने पर छाती पीटने का ढोंग करने वाले जनप्रतिनिधि भी नहीं पहुंचे हैं। लेपा गांव में आस लगाए मृतकों के परिजनों के सिर पर हाथ रखने और सरकारी सहायता देने तक नहीं पहुंचे हैं। स्थानीय दिमनी विधायक रविन्द्र सिंह तोमर भड़ौसा भी चार दिन बाद भी नहीं पहुंचे हैं। सिर्फ आम आदमी पार्टी के नेता मीनाक्षी तोमर अवश्य ही गांव में मृतक के परिजनों से मिलकर आई हैं।
मृतक के परिवार की दरियादिली, आरोपियों के मवेशियों की कर रहे देखभाल
छह लोगों की हत्या करने के बाद गांव से आरोपियों का पूरा परिवार पलायन कर गया। पुलिस ने ताबड़तोड़ बंदूक चलाने वाले अजीत तोमर, भूपेन्द्र सहित अन्य को पकड़ लिया है। आरोपी भागते समय अपनी एक दर्जन के करीब भैंसें और दो घोड़े गांव में ही छोड़ गए हैं। मृतक गजेन्द्र सिंह तोमर के परिजन राकेश तोमर ने कहा इन बेजुवान का क्या कसूर है। मवेशियों व घोड़ों को चारा पानी की व्यवस्था मृतक के परिवार ने गांव के सरपंच बाबूराम से कराई है। दोनों समय गर्मी के मौसम में मवेशियों का ध्यान रखा जा रहा है।
अहमदाबाद से भी पलायन को थे राजी
दिव्यांग नरेन्द्र उनकी बेटी संध्या, शिवानी व रंजीत ने बताया कि जगराम सिंह तोमर और सोबरनसिंह तोमर सात माह पहले पीछा करते हुए अहमदाबाद में भी पहुंच गए थे। सामना होने पर उनके वहां पर भी हाथ जोड़े थे और पूछा था कि यदि आप लोगों को यहां भी कोई दिक्कत है तो हम यहां से भी छोडक़र कहीं और चले जाएंगे। आरोपियों के मन में बदला लेेने की भावना घर कर बैठी हुई थी।