मुरैना बना अंचल की राजनीति का केंद्र बिंदु, त्रिकोणीय मुकाबले ने बढ़ाई दलों की समस्या

डीके जैन

Update: 2024-04-25 00:30 GMT

ग्वालियर। देश की 18 वीं लोकसभा के चुनाव में चुनावी घमासान दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। ग्वालियर- चंबल संभाग भी गर्मी की तपिश के बीच राजनीतिक गर्मी से तपने लगा है और राजनीतिक पारा भी अब ऊपर जाने लगा है। कभी ग्वालियर अंचल की चुनावी राजनीति का मुख्य केन्द्र था। लेकिन अब यह ट्रेंड बदल रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा के इस चुनाव में भी मुरैना अंचल की राजनीति का केन्द्र बन गया है। सभी प्रमुख दल मुरैना से अंचल की चारों सीटों के मतदाताओं को साधने का काम करने जा रहे हैं।

ग्वालियर-चंबल संभाग के अंदर लोकसभा की चार सीटें ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना और गुना आती हैं। संभागीय मुख्यालय भी यहां ग्वालियर में स्थापित रहने से प्रशासनिक नियंत्रण भी यहां से चलता रहा है। वहीं सभी दलों की अंचल की राजनीति भी यहीं से चलती रही है। भाजपा से लेकर कांग्रेस, जनसंघ, कम्युनिस्ट पार्टियां या हिंदू महासभा सभी दलों की राजनीतिक गतिविधियां यहीं से संचालित होती रही है। इसके पीछे एक बड़ा कारण प्रमुख नेताओं का ग्वालियर निवास और आवागमन के साधन। चुनावों के समय कांग्रेस से लेकर जनसंघ अथवा भाजपा और अन्य दलों के प्रमुख नेताओं की सभाएं ग्वालियर के एसएएफ मैदान, मेला मैदान से लेकर महाराज बाड़े पर होती रहीं हैं । कांग्रेस के बड़े नेता जवाहरलाल नेहरू , श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर भाजपा के अटलविहारी वाजपेयी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, लालकृष्ण आडवाणी के अलावा चौधरी चरण सिंह , राजनारायण तक यहां सभा कर अचंल के मतदाताओं को साधते रहे हैं।

चुनावी घमासान और राजनीति के बदलते ट्रेंड से अब बड़े नेताओं को अंचल के मतदाताओं को साधने कई स्थानों पर सभाएं करना पड़ रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अंचल की राजनीति का बड़ा केन्द्र मुरैना रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यहां सभा करने आए थे। वहीं श्योपुर में गृह मंत्री अमित शाह और मुरैना जिले में ही बसपा सुप्रीमो मायावती, आप के प्रमुख अरविंद केजरीवाल तक आए थे। जबकि ग्वालियर में कांग्रेस की प्रिंयका गांधी आईं थीं। इस बार लोकसभा चुनाव में भी चुनावी राजनीति का यहां घमासान हो रहा है। भाजपा, कांग्रेस व बसपा ने मुरैना में अपने- अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार अपनी-अपनी रणनीति भी बनाई है। अंचल की मुरैना सीट इस चुनाव में हाट सीट में तब्दील हो गई है। भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में उतरे शिवमंगल सिंह तोमर के सामने भाजपा के गढ़ को बचाने, कांग्रेस के उम्मीदवार सत्यपाल सिंह सिकरवार के सामने भाजपा के गढ़ को ढहाने और बसपा के रमेश चंद्र गर्ग के सामने नवंबर में हुए विधान सभा चुनाव में पार्टी को मिले करीब ढाई लाख वोटों के सहारे बसपा का खाता खोलने की चुनौती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 25 अप्रैल को यहां आकर अंचल के मतदाताओं को साधेंगे। वहीं 2 मई को कांग्रेस नेत्री प्रिंयका गांधी के आने का कार्यक्रम बन रहा है। वहीं बसपा की ओर से उसकी सुप्रीमो मायावती को भी यहां लाने के प्रयास चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त जातिगत समीकरणों के हिसाब से भी सभी दल आने वाले दिनों में यहां अपने दलों के नेताओं को लाने वाले हैं।

अभी बहुत कुछ होना बाकी है

मुरैना सीट से पिछले चुनाव में निर्वाचित हुए नरेन्द्र सिंह तोमर के विधानसभा चुनाव लडऩे और फिर विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद राजनीतिक गलियारे में बडा़ सवाल था कि भाजपा की ओर से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार कौन? प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा के नाम भी चर्चाओं में रहे पर टिकट मिला पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह को। वहीं कांग्रेस में भी काफी किंतु- परंतु के बाद कभी भाजपा से विधायक रहे सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू को कांग्रेस ने मैदान में उतार मुकाबले को रोचक बना दिया। वहीं सभी की निगाहें बसपा पर थीं।बसपा ने भी उद्योगपति रमेश गर्ग को टिकट देकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। बसपा व कांग्रेस से टिकट को लेकर पूर्व विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया का नाम जोरशोर से चला , लेकिन दोनों ही दलों से उन्हें टिकट नहीं मिला। चूंकि इस चुनाव में जातिय समीकरण के हिसाब से ब्राह्मण और गुर्जर समुदाय की भूमिका कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है ,सो सभी की निगाहें इन समुदायों के नेताओं पर केन्द्रित हैं। भाजपा ने इसमें धमाका कर ब्राह्यण समुदाय को साधने पूर्व विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया को भाजपा में शामिल कराकर अपना पक्ष मजबूत कर लिया है।राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले दिनों में मुरैना में अनेक रंग बदलते दिखाई देंगे । कोई भी दल चुनाव जीतने कोई कोर कसर छोडऩे वाला नहीं है।

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