मुरैना। प्रदेश की रिक्त 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मुरैना जिला दोनों ही दलों के लिए बेहद अहम है। इस जिले की पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने है। यहां चार सीटें मार्च में हुए सियासी फेरबदल के बाद कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई है। वहीँ जौरा विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन से रिक्त हुई है।साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन विधायकों के इस्तीफे और भाजपा में जाने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। कांग्रेस इन उपचुनावों में मुरैना जिले में बढ़त बनाये रखने का प्रयास कर रही है। वहीँ भाजपा भी इस जिले की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जित दर्ज करने की तैयारी कर रही है। मुरैना जिले की पांच विधासभा सीटों पर अब तक हुए चुनावों में मिली-जुली स्थिति रही है।
1. मुरैना
मुरैना जिले की सबसे अहम सीटों में से एक मुरैना विधानसभा सीट पर 1957 से शुरू हुए चुनावों में अब तक सर्वाधिक 5 बार भाजपा को जीत मिली है। वही कांग्रेस ने 4 बार जीत हासिल की है। इसके अलावा दो बार भारतीय जनसंघ पार्टी व एक-एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और जनता पार्टी के प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके है।
जातीय समीकरण -
इस सीट पर कूल 2.53 लाख मतदाता है, जिसमें 1.39 लाख पुरुष एवं 1.12 लाख महिला वोटर है। वही जातीय समीकरण की बात करे तो इस सीट पर गुर्जर, ब्राह्मण और अनुसुचित जाति के मतदाता किसी भी प्रत्याशी की जीत में अहम भूमिका निभाते है। इस सीट पर भी चुनावों को देखें तो औसतन 50 फीसदी से अधिक मतदान होता आया है। सर्वाधिक 63.92 प्रतिशत मतदान साल 2018 के चुनाव में हुआ था। इसी साल महिलाओं के वोट प्रतिशत में भी बढ़ोत्तरी हुई थी।
चुनावी इतिहास-
- साल 1957 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व विधायक कुंवर यशवंत सिंह की जीत हुई थी।
- साल 1962 और 1977 के चुनावों में जनता पार्टी के उम्मीदवार पूर्व विधायक जबर सिंह ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के टिकट पर पूर्व विधायक जे सिंह ने जीत हासिल की थी।
- साल 1972 के चुनाव में पूर्व विधायक महाराज सिंह ने भारतीय जनसंघ के टिकट पर और 1980 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी।
- साल 1985 के चुनाव में भाजपा के जहर सिंह ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1990 और साल 1998 में भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक सेवाराम गुप्ता ने जीत हासिल की थी।
- साल 1993 में कांग्रेस के सोवरन सिंह को जीत मिली।
- साल 2003 और 2013 के चुनाव में भाजपा नेता एवं पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह ने जीत दर्ज की थी।
- साल 2008 में बसपा उम्मीदवार रहे पूर्व विधायक परम सिंह मुदगल ने जीत दर्ज की थी।
- साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर रघुराज सिंह कंसाना ने जीत हासिल की थी।
इस उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रघुराज सिंह कंसाना का सीधा मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी राकेश मावई से है।
2. सुमावली -
सुमावली विधानसभा सीट सभी चुनावों में मुरैना की सबसे बड़ी हॉट सीट मानी जाती रही है। इस सीट पर सबसे ज्यादा चौकाने वाले परिणाम सामने आते रहे है। साल 1977 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव से लेकर पिछले साल 2018 के चुनावों तक कांग्रेस और भाजपा को 3-3 बार सफलता मिली है।वहीं बसपा प्रत्याशी भी दो बार जीत दर्ज कर यहां से विधानसभा जा चुके है। इसके अलावा जनता दल और जनता पार्टी ने भी एक-एक बार जीत दर्ज की है।
जातीय समीकरण -
यहां कुल 2.36 लाख मतदाता है। जिसमें से 1.30 लाख पुरुष एवं 1.05 लाख महिला मतदाता है। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो क्षत्रिय और गुर्जर समाज के वोट जीत में अहम भूमिका निभाते है। यहां करीब 35 हजार ठाकुर मतदाता है, जबकि दूसरे नंबर पर गुर्जर समुदाय के मतदाता है। यहां तीसरे नंबर पर कुशवाह समाज के मत है। जो किसी भी पार्टी और नेता की जीत में अहम भूमिका निभाते है।
चुनावी इतिहास -
- 1977 में हुए पहले चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार जहर सिंह ने जीत दर्ज की थी।
- 1980 में भाजपा उम्मीदवार योगेंद्र सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार लोकेन्द्र सिंह को हराया था।
- 1985 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस को सफलता मिली। कांग्रेस प्रत्याशी रहे किरत सिंह कंषाना ने जनता पार्टी के सूबेदार सिंह को हराया था।
- 1990 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर गजराज सिंह सिकरवार जीत ने जीत दर्ज की। वह दूसरी बार साल 2003 के चुनाव में भाजपा के टिकट से जीत दर्ज कर विधायक बने।
- 1993 और 1998 में बसपा के टिकट से मंत्री एंदल सिंह कंसाना ने जीत दर्ज की थी।
- 2008 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट से मंत्री एंदल सिंह कंसाना ने तीसरी बार जीत दर्ज की।
- 2013 में एक बार फिर भाजपा ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार पहली बार विधायक बने।
2018 के चुनाव में एक बार फिर मंत्री एंदल सिंह कंसाना कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर विधायक बनें। मार्च में हुए सियासी फेबदल के बाद मंत्री एंदल सिंह कंसाना ने विधायकी और कांग्रेस पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मंत्री एंदल सिंह कंसाना का मुकाबला कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाह से है।
3. दिमनी
मुरैना जिले की दूसरी बड़ी हॉट सीट मानी जाने वाली ये विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है।यहां साल 1962 में हुए पहले चुनाव से लेकर 2018 के चुनाव तक भाजपा ने सर्वाधिक 6 बार जीत दर्ज की है। वहीँ कांग्रेस को महज दो बार साल 1993 और 2018 के चुनाव में सफलता मिली है। इसके अलावा 2 बार निर्दलीय एवं 1-1 बार भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी को जीत मिली है।
जातीय समीकरण -
इस सीट पर कुल 2.13 लाख मतदाता है, जिसमें से 1.16 लाख पुरुष एवं 0.95 लाख महिला मतदाता है। ये सीट क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाता बहुल सीट है। यहां करीब 60 हजार क्षत्रिय मतदाता है। इसके बाद दूसरे स्थान पर ब्राह्मण मतदाता है,जो निर्णायक की भूमिका निभाते है।
चुनावी इतिहास -
- साल 1962 के चुनाव में सुमेर सिंह ने निर्दलीय जीत दर्ज की थी।
- साल 1967 के चुनाव में एसएस अमरिया ने निर्दलीय जीत दर्ज की थी।
- साल 1972 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के टिकट पर छवी राम ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार मुंशीलाल ने जीत हासिल की थी।
- इसके बाद मुंशीलाल ने साल 1980, 1985,1990 और 1998 के चुनावो में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी।
- साल 1993 में कांग्रेस के टिकट से रमेश कोरी ने जीत दर्ज की थी।
- साल 2003 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार रही संध्या राय ने जीत दर्ज की थी।
- साल 2008 में भाजपा के टिकट पर शिव मंगल सिंह तोमर ने जीत दर्ज की थी।
- साल 2013 में बसपा के उम्मीदवार बलबीर दंडोतिया ने जीत दर्ज की थी
साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर गिर्राज दंडोतिया ने जीत दर्ज की थी। इस उपचुनाव में वह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है, उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी रविंद्र सिंह तोमर से है।
4. अम्बाह
मुरैना जिले की ये सीट अनुसूचित प्रत्याशी के लिए आरक्षित है। इस सीट पर 1957 में हुए पहले चुनाव से लेकर साल 2018 के चुनावों तक कांग्रेस ने सर्वाधिक 5 बार जीत दर्ज की है। वही भारतीय जनता पार्टी को 4 बार इस सीट पर विजय मिली है। इसके अलावा 1 बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, 1 बार जनता पार्टी, 1 बार जनता दल, 1 बार बसपा और 1 बार ही निर्दलीय उम्मीदवार भी जीत दर्ज हासिल कर चुके है।
जातीय समीकरण -
इस सीट पर कुल 2.23 लाख मतदाता है, जिसमें 1.18 लाख पुरुष एवं 1.01 लाख महिला मतदाता है। यदि जातीय समीकरण की बात करे तो यहां ठाकुरों, गुर्जरों और ब्राह्मण के मत अहम भूमिका निभाते है।इस सीट पर सामान्य रूप से 50 फीसदी से अधिक मतदान होता आया है। यहां सबसे ज्यादा 80.97% मतदान 2018 में हुआ था।
चुनावी इतिहास -
- साल 1957 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रामनिवास छीतरलाल ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1962 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीवार जगदीश सिंह ने विजय हासिल की थी।
- साल 1967 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रतीराम ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1972 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राजा राम सिंह ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार चोखेलाल ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1980 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कमोदीलाल ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1985 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राम नारायण शंखवार ने जीत हासिल की थी।
- साल 1990 के चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार किशोर ने जीत दर्ज की थी।
- साल 1993, 1998 और 2003 के चुनावों भाजपा उम्मीदवार बंशीलाल जाटव को लगातार तीन बार जीत मिली।
- साल 2008 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार कमलेश जाटव को जीत मिली थी।
- साल 2013 के चुनाव में बहुजन समज पार्टी के उम्मीदवार सत्यप्रकाश शंखवार ने जीत हासिल की।
साल 2018 के चुनाव में कमलेश जाटव ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी लेकिन मार्च में हुए सियासी फेरबदल के बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। इस उपचुनाव में वह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है, उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी सत्य प्रकाश शंखवार से है। सत्य प्रकाश शंखवार ने साल 2013 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और निकटतम प्रत्याशी को 10 हजार मतों से हराकर विधायक बने थे।
5. जौरा
जौरा विधानसभा सीट चंबल अंचल में कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती है। यहां 1957 से लेकर साल 2018 तक के चुनावों में कांग्रेस ने सर्वाधिक 5 बार, बसपा ने 3 और भाजपा ने 1 बार इस सीट पर जीत दर्ज की है। इसके अलावा 2 बार निर्दलीय, 1 बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, 1 बार जनता पार्टी और 1 ही बार जनता दल को यहां विजय मिली है।
जातीय समीकरण -
इस सीट पर कुल 2.42 लाख मतदाता है, जिसमें 1.31 लाख पुरुष, एवं 1.10 लाख महिला मतदाता शामिल है। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो यहां ब्राह्मण,क्षत्रिय और धाकडों के वोट किसी भी प्रत्याशी और हार में महत्वपूर्ण माने जाते है। यहां ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब 40 हजार एवं राजपूत और धाकडों 20-20 हजार मतदाता है। जोकि बड़ी भूमिका निभाने के साथ जीत -हार का मुख्य कारण बनते है।
चुनावी इतिहास -
- 1957 के पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार चेतलाल ख़ासीप्रसाद जीत हासिल कर निर्वाचित हुए थे।
- 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता पंचम सिंह विधायक निर्वाचित हुए थे।
- 1967 के चुनाव में निर्दलीय रामचरण लाल मिश्रा ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1972 और 1980 के चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर दो बार और विधायक बने।
- 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार सूबेदार सिंह जीत हासिल कर विधायक बने।
- 1985 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीवार महेश दत्त मिश्रा ने जीत हासिल की थी।
- 1990 के चुनाव में जनता दल के सुबेदार सिंह को जीत मिली थी।
- 1993 और 1998 में बसपा के सोनेराम कुशवाहा जीते थे।
- 2003 के चुनाव में उम्मेद सिंह बाना ने कांग्रेस पर जीत दर्ज की थी।
- 2008 के चुनाव में बसपा के मनिराम धाकड़ ने जीत दर्ज की थी।
- 2013 के चुनाव में पहली बार भाजपा को ये सीट मिली। भाजपा उम्मीदवार सुबेदार सिंह जीत दर्ज की थी।
2018 के चुनाव में कांग्रेस के बनवारीलाल शर्मा ने जीत दर्ज की थी। उनके निधन से ये सीट रिक्त हो गई है। जिस पर उपचुनाव हो रहे है। कांग्रेस ने इस सीट से पंकज उपाध्याय को मैदान में उतारा है। वहीँ भाजपा सूबेदार सिंह रजौधा को चुनाव मैदान में उतारा है। सूबेदार सिंह ने 2013 के चुनाव में जीत दर्ज कर भाजपा को पहली बार ये सीट दिलाई थी। इस उपचुनाव में भी उनका पलड़ा भारी माना जा रहा है।