MP News: सहकारिता विभाग का किस्सा सुनाते हुए सीएम मोहन यादव ने कहा - मैं खुद भुगतभोगी...

MP News : भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के अवसर पर भोपाल में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने सहकारिता से जुड़ा उनका एक किस्सा सुनाया। सीएम यादव ने मंच से यह सवाल भी किया कि, सहकारिता की शुरुआत कहां से हुई।
सीएम डॉ. मोहन यादव ने पूछा - सहकारिता की शुरुआत कहां से हुई?
इसका जवाब मिला - साल 1840 में इंग्लैंड से सहकारिता की शुरुआत हुई।
इसके बाद सीएम ने कहा - अंग्रेज 1840 के पहले ही भारत में राज करने आ गए थे। यहां से वे कई चीजें सीखें। यह देखने वाली बात है कि, भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण क्यों नहीं किया? इसका उत्तर ढूंढेंगे तो पता चलेगा कि, हमारे यहां अश्वमेघ यज्ञ की परंपरा है। सच्चे अर्थों में यूनाइटेड नेशन का पालन करने वाला देश भारत है। हम कहते हैं सर्वे भवन्तु सुखिना...बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय और वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा हमारे यहां हैं। सहकारिता के आयाम कितने हैं? इसके महत्त्व को समझते हुए बहुदेशीय सहकारिता समिति का गठन हुआ है। इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पास है।
सीएम ने सुनाया किस्सा :
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बताया - "मैं सहकारिता से जुड़ा भी रहा और सहकारिता से दूर भी रहा। अच्छे खासे व्यक्ति को अगर बर्बाद करना हो तो उसे सहकारिता में बैठाकर उसके खिलाफ जांच बैठा दो। भगवान ही जानते हैं कि, वो कैसे इससे बाहर आएगा। भगवान के अलावा सहकारिता के अधिकारी ही जानते हैं कि, इससे कैसे बाहर आना है।"
मैं खुद भुगतभोगी हूँ। उज्जैन में मुझे लगा कि, लोगों को सस्ते मकान मिलने चाहिए और इसके लिए सहकारिता समिति बननी चाहिए। इसके लिए मैंने प्रस्ताव तैयार किया। उस समय वल्लभ भवन में प्रस्ताव पहुंचा। इसके पहले मुझसे नीचे बैठने वाले अधिकारियों ने ही कहा कि, हाउसिंग सोसायटी का रजिस्ट्रेशन बंद है। जब मुझे यह पता चला तो मैंने उनसे कहा आप आगे बढ़ाइए फ़ाइल हम देखते हैं। इसके बाद वे रोज नए कागज मंगवाते थे। मैं हर बार कागज दे देता था। इसके बाद कोई और वरिष्ठ अधिकारी आता और एक नया कागज बता देता।
मैं जब वल्ल्लभ भवन पहुंचा तो मुझे शारदा नाम के एक अधिकारी मिले। मैं उन तक अपने प्रस्ताव लेकर पहुंचा। उन्होंने कहा कि, सब ठीक है। दो चार दिन बाद उन्होंने भी तीन चार कागज थमा दिए। यह प्रक्रम भी 6 से 8 महीने चला। उस समय हमारे संगठन मंत्री थे शालीग्राम तोमर। मैं उस समय विद्यार्थी परिषद् का कार्यकर्ता था। एक दिन मेरे धैर्य की सीमा ख़त्म हो गई और मैंने उनसे कहा - यह सहकारिता संघ है या बेवकूफ बनाओ संघ है। उन्होंने जब पूछा कि, क्या हुआ तो मैंने उन्हें पूरी बात बताई।
साल भर हो गया कागज देते हुए लेकिन इनकी पेट की भूख खत्म नहीं हुई। उन्होंने फोन लगाया और कहा कि, जाओ काम हो जाएगा। उस समय मंत्री थे लक्ष्मी कांत शर्मा जी। उन्होंने कहा कि, बस आखिरी बार कागज की पूर्ती कर दो काम हो जाएगा। जब मैं घर पहुंचा तो एक फिर से कागज वापस आ गए।
तब मुझे एक समझदार व्यक्ति ने कहा - आप समझे नहीं यह क्या होता है...आप गौर करिए तो बात समझ आ जाएगी। तुम कागज की पूर्ती कर रहे हो लेकिन वे तुम्हें सहकारिता में आने नहीं देना चाहते यह बात तुम नहीं समझ रहे हो। उनकी सल्तनत अलग है वे नहीं चाहते तुम आओ। जिसको आने देना है उसके कागज तैयार हैं।
मैं जब वापस शालीग्राम जी के पास गया। वे मुझे अपने साथ स्कूटर पर बैठाकर मंत्रालय ले गए। जब बात हुई तो उन्होंने किसी अधिकारी को आदेश दिया। इसके बाद शाम तक सहकारिता का रजिस्ट्रेशन आ गया। उस दिन मुझे पता चला कि, यह है सहकारिता।