जयंती विशेष: एक कवि के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी...आपातकाल पर लिखा - दिल्ली के दरबार में कौरवों का है जोर
अटल बिहारी वाजपेयी 100वीं जयंती विशेष : 'दिल्ली के दरबार में कौरवों का है जोर, लोकतंत्र की द्रौपदी रोती नयन निचोर, रोती नयन निचोर नहीं कोई रखवाला, नए भीष्म द्रोंणों ने मुख पर ताला डाला, कह कैदी कविराय बजेगी रण की भेरी, कोटि - कोटि जनता न रहेगी बनकर चेरी...।'
ये कविता पढ़कर आपको क्या याद आता है? अगर आप भारत के इतिहास में रुचि रखते हैं तो इस कविता को पढ़कर आपको एमरजेंसी की याद आएगी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई तो इस कविता को लिखने वाले कवि भी जेल की सलाखों के पीछे थे। उन्होंने जेल की चार दीवारी के अंदर रहते हुए अपनी भावनाओं को शब्दों की माला में पिरोकर ऐसी - ऐसी कविता लिखी कि, आज भी उनकी कविता आपातकाल का भयावह दृश्य सटीकता से पाठक को दिखाती है।
हम बात कर रहे हैं तानसेन की नगरी में जन्मे और भारत के इतिहास में अपनी अटल छाप छोड़ने वाले वाजपेयी की। वे साहित्यकार या कवि बनना चाहते थे लेकिन उनकी किस्मत उन्हें 7 रेस कोर्स तक ले आई, इसे आज लोक कल्याण मार्ग के नाम से जाना जाता है।
अटल बिहारी वाजपेयी कितने अच्छे राजनीतिज्ञ थे यह बात तो सभी जानते हैं। आज बात कवि अटल बिहारी वाजपेयी की और उनके द्वारा लिखी गई अमर कविताओं की होगी।
अटल बिहारी वाजपेयी को कविताएं रचने की कला विरासत में मिली। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी कवि ही थे। शुरुआती दौर में राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी की खासा दिलचस्पी नहीं थी वे तो साहित्यकार और कवि बनना चाहते थे। पढाई - लिखाई में विशेष रुचि रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी काफी अच्छे वक्ता, संवेदनशील व्यक्ति और सबसे ऊपर अच्छे इंसान थे। यही कारण था कि, भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी अमिट छाप छोड़ दी।
आपातकाल पर अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत सी कविताएं लिखीं। उन्होंने जेल में होने वाली असुविधा से लेकर संघ पर प्रतिबंध लगाने तक और इंदिरा गांधी को भारत माता के तुल्य बताने पर भी कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाएं जाहिर की। जो कविता आपने शुरुआत में पढ़ीं वह आपातकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लिखी गई कई कविताओं में से एक है।
जब संघ पर लगा प्रतिबंध तो अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा -
अनुशासन के नाम पर, अनुशासन का खून,
भंग कर दिया संघ को, कैसा चढ़ा जुनून,
कैसा चढ़ा जुनून, मातृपूजा प्रतिबंधित,
कुलटा करती केशव-कुल की कीर्ति कलंकित,
यह कैदी कविराय तोड़ कानूनी कारा,
गूंज गा भारतमाता- की जय का नारा...।
जेल में रहकर अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा -
डाक्टरान दे रहे दवाई, पुलिस दे रही पहरा,
बिना ब्लेड के हुआ खुरदुरा, चिकना-चुपड़ा चेहरा,
चिकना-चुपड़ा चेहरा, साबुन तेल नदारद,
मिले नहीं अखबार, पढ़ें जो नई इबारत,
कह कैदी कविराय, कहां से लाएं कपड़े,
अस्पताल की चादर, छुपा रही सब लफड़े...।
अटल बिहारी वाजपेयी की वो कविता का भी बेहद लोकप्रिय है जिसमें उन्होंने इंदिरा गांधी को इंडिया कहे जाने का विरोध किया था। उन्होंने लिखा था -
'इंदिरा इंडिया एक है: इति बरूआ महाराज,
अकल घास चरने गई चमचों के सरताज,
चमचां के सरताज किया अपमानित भारत,
एक मृत्यु के लिए कलंकित भूत भविष्यत,
कह कैदी कविराय स्वर्ग से जो महान है,
कौन भला उस भारत माता के समान है?'
अटल बिहारी वाजपेयी काफी भावुक व्यक्ति थे। जब जनता पार्टी बिखरी तो अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा -
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ....
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ।
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं, गीत नहीं गाता हूँ।
जनता पार्टी के बिखरने के बाद जब भाजपा बनी तो अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा -
“टूटे हुए तारों से, फूटे बासंती स्वर,
पत्थर की छाती में, उग आया नव अंकुर।
प्राची में अरुणिमा की, रेख देख पाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ।”
हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं।
गीत नया गाता हूं।"