बिजन सेतु हत्याकांड: कमरेड, भारत संन्यासियों को जिंदा जलाया जाना भुला नहीं है!

विप्लव विकास

Update: 2022-04-30 14:01 GMT

वेबडेस्क। वैश्विक कोरोना महामारी से त्रस्त भारत में 16 अप्रैल 2020 को महाराष्ट्र के पालघर में दो भगवाधारी संन्यासियों को एक भीड़ पीट-पीट कर मार देती है। क्यों मारती है? कुछ लोगों द्वारा ऐसी अफवाह फैलाई गई थी कि साधुवेश में ये लोग बच्चे चुराते हैं। सारा भारत दुखी हुआ था। उस दुखद घटना की दूसरी वार्षिकी पर भी खूब चर्चा हुई। यह एक अच्छी पहल है कि समाज जग रहा है और ऐसे मानवता के हत्यारों के कुकृत्यों पर चर्चा कर रहा है। सरकारों और न्यायालयों पर न्याय करने के लिए दबाव बना रहा है। परन्तु क्या आपने कहीं पर भी आज से ठीक चालीस वर्ष पूर्व 30 अप्रैल 1982 को दक्षिण कोलकाता के 'बिजन सेतु' पर 17 आनंद मार्गी संन्यासियों के जिंदा जलाए जाने की खबर पढ़ी, कोई चर्चा देखी? 

पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का विपक्षीहीन और एकछत्र राज्य था। वामपंथी अपने पार्टी के एजेंडे के अनुसार पश्चिम बंगाल के हर घर, हर गली, हर मुहल्ले और समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर कब्जा जमा कर अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे थे। इस एजेंडे की राह में जो भी आया उसे राख कर दिया गया।आज जो वामपंथी लोकतंत्र, मानवता, संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं वे अपने शासन में दूसरे पक्ष की उपस्थिति तक को बर्दाश्त नहीं करते हैं। यह मैं नहीं उनके कृत्यों का साक्षी समय हम सभी की आंखों में ऊंगली डाल कर दिखा रहा है।

वामपंथी अपने किसी भी प्रभावशाली शत्रु की हत्या करने से पूर्व समाज में उसके विरूद्ध एक आम राय तैयार करने के लिए अफवाह फैलाते हैं। उसके प्रति समाज में एक घृणा, वितृष्णा और अश्रद्धा का भाव जगाते हैं। फिर जब हत्या कर देते हैं तब हत्या जैसे अपराध पर नहीं बल्कि जिसकी हत्या की है उसके उसी चरित्र पर चर्चा करते हैं जिसको उन्होंने स्वयं 'फ्रेम' किया था। इसी तरीके से वामपंथियों ने अनेक प्रभावशाली व्यक्तियों एवं उनके व्यक्तित्वों की हत्या की है। 

जैसे पालघर में संतों की हत्या बच्चा चोरी के नाम पर कर दी गई वैसे ही आनंद मार्गियों की नृशंस हत्या से पहले समाज में यह अफवाह फैलाया गया कि ये भगवाधारी लोग छोटे बच्चे चुराते हैं। उन संन्यासियों की छवि 'छेलेधोरार लोक' वाली बना दी गई। बिजन सेतु हत्याकांड से पूर्व भी वामपंथियों ने पुरुलिया में 5 संन्यासियों की क्रुर हत्या की थी।

आखिर ये वामपंथी इन संन्यासियों की हत्या क्यों कर रहे थे? 

1955 में प्रभात रंजन सरकार के द्वारा स्थापित आनंद मार्ग संप्रदाय पूंजीवादी व्यवस्था और वामपंथी व्यवस्था दोनों का मुखर विरोधी था। श्री प्रभात रंजन सरकार ने 1959 में प्रोग्रेसिव यूटिलाइजेशन थ्योरी (PROUT) प्रतिपादित किया। यह सामाजिक-धार्मिक संस्थान गांवों में आम लोगों के जीवन स्तर को ठीक करने के लिए अपने ब्रह्मचारियों और संन्यासियों के माध्यम से बहु सेवा प्रकल्प संचालित करने लगी। इस नए विचार से पश्चिम बंगाल के चिंतनशील और समाज के कल्याणार्थ कार्य करने वाले लोग आकर्षित हो कर बड़ी संख्या में जुड़ने लगे। कई लोग आजीवन अविवाहित या ब्रह्मचारी रह कर इस मार्ग का अनुगमन करते हुए समाज जीवन में सुधार के लिए कार्य करने का व्रत लिए। ब्रह्मचारी और संन्यासी बनने लगे। स्त्री और पुरुष दोनों को खूब समर्थन और समर्पित भाव से सहयोग प्राप्त होने लगा। समाज में आनंद मार्गियों का प्रभाव और उनकी स्वीकार्यता तेजी से बढ़ती चली जा रही थी। बस यहीं से वामपंथियों को अपने ऊपर एक भावी खतरा आता हुआ दिखने लगा।

इसी बीच दक्षिण कोलकाता के वामपंथी गढ़ तिलजला में आनंद मार्गियों ने अपना मुख्यालय का भवन निर्माण करना आरंभ किया। वामपंथियों ने इनके बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए दक्षिण कोलकाता में पिकनिक गार्डन के कालोनी बाजार में 6 फरवरी 1982 को एक मिटींग की। समाचार पत्रों में प्रकाशित नामों के अनुसार उस मिटींग में कांति गांगुली,वाम शासन में मंत्री, सहित तत्कालीन जादवपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद सोमनाथ चटर्जी जो बाद में लोकसभाध्यक्ष भी बने जैसे कई प्रभावशाली कामरेड उपस्थित थे। उसके बाद संन्यासियों के विरुद्ध समाज में माहौल बनाने हेतु पर्चे बांटे गए थे।

30 अप्रैल 1982 के दिन एक शैक्षणिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए टैक्सी से संन्यासियों का दल कार्यक्रम स्थल की ओर जा रहा था। बालिगंज के निकट बिजन सेतु पर टैक्सी रोक कर साधुओं को खिंच कर बाहर निकाला गया। पहले उन्हें लोहे के राॅड, लाठी, डंडे, ईंट, पत्थर जिसके पास जो हथियार हाथ में था उसी से उन निरपराध साधुओं को दिन में हजारों की संख्या में पुल और उसके आसपास मूकदर्शक बने लोगों के बीच खूब मारा गया। जो भागे उनको दौड़ा कर मारा गया। एक ही समय तीन जगहों पर कामरेडों की पूर्व-प्रस्तुत भीड़ ने साधुओं पर हमला किया। कहीं तो रेल लाइन पर फेंक फेंक कर मारा गया। फिर अधमरे संन्यासियों को जिंदा जला दिया गया। इस मॉब लिंचिंग के बारे में आपने कभी कुछ सुना है? आखिर 'कामरेड्स इन मिडिया' सच को क्यों दिखाएं? पार्टी लाइन पर चलते हुए सुनियोजित हत्या किया गया है तो फिर इकोसिस्टम का कौन सा सदस्य इस सत्य पर मूंह खोलकर अपने आप को पार्टी-शत्रु बनाएगा? आखिर जान और जातिबदर होने का डर किस कामरेड को नहीं है?

आप सोचिए क्या अपराध था आनंद मार्गियों का? राज्य में वामपंथी शासन रहते हुए भी समाज में उनकी स्वीकार्यता का बढ़ना या गरीबों की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए अपने जीवन की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की तिलांजलि दे जन सेवा में लग जाना? या फिर पूंजीवाद के स्वघोषित विरोधियों की आंखों में आंखें डाल कर व्यवहारिक रूप से सफल एक नए विचार को स्थापित करने वाले भगवाधारी संन्यासियों की यह गरीबहितैषी पहल ही अपराध हो गई? 

मानवाधिकार के मार्केट के टाप मैनेजर्स वामपंथियों ने आनंद मार्गी संन्यासियों के साथ जो किया उसे आज भी पश्चिम बंगाल नहीं भूला है। भले ही न्यायालय से न्याय नहीं मिला परन्तु समाज मुखर हो हत्यारों का नाम लेता है। अखबारों के हेडलाइंस उन षड्यंत्रकारियों के नाम काले अक्षरों में सबको दिखाते हैं। वो वामपंथी शासन जिसके दम पर इस जघन्य अपराध को छिपाने का कुत्सित प्रयास हुआ और दोषियों को बचाया गया, गवाहों को धमकाया और निपटाया गया आज बंगाल में धूल में मिल गया है। दशाधिक वामपंथी पार्टियां और शताधिक संगठन होने के बाद भी 2021 के विधानसभा चुनाव में एक विधायक भी विधानसभा नहीं भेज सके।

वामपंथी विचारधारा और कामरेड मानवता के सबसे घातक शत्रु है इनके ऐसे कृत्य इसको प्रमाणित करते हैं। इस दुर्दांत घटना पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने निर्लज्जता से वामपंथी सुलभ बात कही थी "क्या किया जा सकता है? ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं!"

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