मध्य प्रदेश में विधानसभा की 28 सीटों पर उपचुनाव के परिणाम साफ हो चुके हैं, भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सरकार को अल्पमत का कोई खतरा अब शेष नहीं । कांग्रेस ने सत्ता खोने के बाद जिस तरह से हिम्मत दिखाई थी और कहा था कि वह उपचुनाव में जीतकर आएगी और फिर उसकी प्रदेश में सफलतम सरकार होगी या कांग्रेस के अन्य मंत्रियों ने जो कहा-भाजपा अधिक दिनों तक छल से प्राप्त सत्ता पर नहीं बनी रह सकती । वस्तुत: पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से लेकर उनके सभी साथियों की इस बात को जनता का कोई समर्थन नहीं मिला।
उपचुनाव के आए यह परिणाम साफ बता रहे हैं कि पूर्व में 2018 में कांग्रेस को सत्ता देना उसकी सबसे बड़ी भूल थी, जिसे सुधारने का उसे अवसर दिया गया और उसने इस बार बिना गलती किए अपनी पूर्व गलती को सुधार लिया है। प्रदेश में भाजपा की सत्ता को स्थिर करनेवाले इस उपचुनाव के नतीजों ने यह भी साफ कर दिया कि उसे न तो कमलनाथ सरकार की कर्जमाफी आकर्षित कर सकी और न ही कांग्रेस नेताओं के भाजपा पर लगाए गए सौदेबाजी, बिकाऊ-टिकाऊ, गद्दारी के रेट कार्ड जारी करने वाले आरोप उसे पसंद आए हैं । यही कारण है कि अधिकांश सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार पूर्व चुनाव की तुलना में पहले से कई गुना अधिक अंतर से विजयी हुए।
वस्तुत: जिस तरह से कांग्रेस ने सत्ता आते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री बने कमलनाथ ने भाजपा की शिवराज सरकार द्वारा शुरू की गई जनहितैषी योजनाओं को रोका था, सही मायनों में यह उन योजनाओं के रोके जाने का भी विरोध प्रदर्शन है, जिसे वोट की ताकत के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। सरकार के बहुमत में आते ही आज जो बयान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का आया है, उस पर भी गौर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ''यह भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा की जीत है, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के आशीर्वाद की जीत है। भाजपा मध्य प्रदेश में विकास और जनकल्याण के काम करेगी, यह इस विश्वास की जीत है''
यहां आप उनके कहे इन शब्दों पर गहराई से गौर कीजिए ''यह विचारधारा की जीत है'' वास्तव में ही यह विचारधारा की जीत है, यह उस विचारधारा की जीत है, जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को माता के रूप में पूजती है और श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक तमाम लोगों को समाज और देशकार्य के लिए पूर्णत: समर्पित कर देती है।
यह एक वास्तविकता भी है कि लोकतंत्र में सत्ता सर्वोपरि है, जिसकी सत्ता उसका सर्वोच्च अधिकार, यह बात सर्वप्रथम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उस समय समझ आ गई थी, जब उसका नाम महात्मा गांधी की हत्या में घसीटा गया न केवल घसीटा गया था, बल्कि कई स्वयंसेवकों को बुरी तरह से तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रताड़ित तक किया गया । तभी संघ को यह समझ आ गया था कि भारत माता के पूर्ण समर्पण से काम नहीं चलने वाला है, इसके साथ ही पूरा वन्देमातरम् अपने मूल के साथ स्वरबद्ध-लयबद्ध बोलने वालों का समर्थन राजनीतिक स्तर पर भी चाहिए । नहीं तो अभी स्वतंत्र भारत में प्रताड़ना की शुरूआत है, भविष्य कितना भयावह होगा, सोचा नहीं जा सकता। यही वह कारण रहा, जिसने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ पं. दीनदयाल उपाध्याय और बलराज मधोक जैसे संघ प्रचारकों को जोड़ दिया और जनसंघ का उदय हो उठा। उसके बाद जनता पार्टी से भाजपा तक कि यात्रा हम सभी को विदित है।
वस्तुत: हर हाल में राजनीतिक पार्टी का धर्म है कि वह सत्ता प्राप्त करे। चाणक्य से लेकर विचारधारा के स्तर पर कोई भी क्यों न हो दक्षिण पंथी या वामपंथी मार्क्स-लेनिन जैसे विचारक, सभी की राजनीतिक शिक्षा यही कहती है कि साम, दाम, दण्ड, भेद, किसी भी माध्यम से या संयुक्त माध्यम से ही सही सर्वप्रथम सत्ता प्राप्त करना किसी भी राजनीतिक दल का लक्ष्य होना चाहिए, क्योंकि सत्ता रहते ही आप अपने विचारों को व्यवहार में बदल सकते हैं। मध्य प्रदेश में 2018 विधानसभा चुनाव के बाद से 15 माह के लिए सत्ता में रही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को इस सब दृष्टि से जोड़कर देखें तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आते ही मीसाबंदी पेंशन योजना, मुख्यमंत्री जन कल्याण योजना (संबल योजना), गरीबों के लिए सस्ते भोजन की दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना, राष्ट्रगीत की परंपरा जिसमें राज्य सचिवालय में राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' गाने की परंपरा शुरू की गई थी, कमलनाथ ने यह कहकर बंद कर दी थी कि 'वंदे मातरम' गाना किसी की राष्ट्रभक्ति का परिचय नहीं हो सकता । दीनदयाल वनांचल सेवा योजना जिसे भाजपा सरकार ने ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को वन विभाग के सहयोग से शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागृति लाने के लिए शुरू किया गया था । पढ़ाई में अव्वल स्टूडेंट को लैपटॉप साइकिल और स्मार्टफोन देने जैसी तमाम योजनाओं और ध्येय निष्ठ पत्रकारिता के लिए दिया जानेवाला मामा माणिकचंद वाजपेयी पुरस्कार तक को बंद कर दिया गया था । सिर्फ इसीलिए कि इन सभी में कांग्रेस के नेताओं के नाम उद्घाटित नहीं होते थे।
सत्ता होने का सीधा असर क्या हो सकता है, यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। जब भाजपा दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवतावाद को लेकर चलती है, जिसमें विकास से दूर अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को मुख्य धारा में लाने का संकल्प है, तब निश्चित ही इस लक्ष्य की प्राप्ती के लिए उसे सत्ता पर आरुढ़ होना अति आवश्यक है। सत्ता रहेगी तो विचार सहज सुलभ आगे बढ़ता रहेगा। सन् 1975 की तरह मीसा का दंश नहीं झेलना होगा और ना ही भारत माता की दिन-रात आराधना करनेवालों को गांधी वध की तरह झूठे आरोप में जेल यातनाएं सहनी होंगी । वह तो भला हो भारतीय न्याय प्रणाली का कि उसने सत्य को उद्घाटित कर दिया, अन्यथा आज इतिहास संघ के स्वयंसेवकों को लेकर कुछ ओर ही बयां कर रहा होता।
वस्तुत: इसलिए सत्ता परिवर्तन और स्थायी सत्ता भाजपा के लिए आवश्यक है और उसका राजनीतिक धर्म भी यही कहता है कि पहले वह अपने उच्च उद्देश्य की पूर्ति के लिए सत्ता प्राप्त करे, जो उसने यहां इस उपचुनाव में जीत हासिल करने के साथ ही कर दिखाया है। कहा जा सकता है कि अपने राजनीतिक धर्म के हिसाब से भाजपा ने सही राजनीतिक धर्म का परिचय यहां दिया है। अन्य राज्यों में भी यह धर्म सत्ता का आधार बने तो कुछ बुरा नहीं होगा।
लेखक पूर्व फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्य एवं पत्रकार हैं।