स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हर एक भारतवासी के ह्रदय में यह आकांक्षा पलनी शुरू हुई थी कि..क्या वह दिन भी कभी आएगा जब हमारे भारत देश को वैश्विक क्षितिज में दीन-हीन, बेबसी की गढ़ी हुई छवि से मुक्ति मिलेगी..? नसूर की भाँति लहकने वाली कश्मीर समस्या का क्या कभी हल होगा? डाक्टर श्यामप्रसाद मुखर्जी का नारा - कश्मीर में एक निशान एक विधान, फलित होगा? राम जन्मभूमि में रामलला के मंदिर के रूप में हमारे स्वाभिमान की पुनः प्राणप्रतिष्ठा होगी? और भी अनंत आकांक्षाएं रही हैं देशवासियों के मन मन में।
आज जब विश्व के सम्मुख एक भारत, समर्थ भारत, स्वाभिमानी भारत सीना ताने खड़ा है, ऐसे में हर राष्ट्रभक्त के मनो-मष्तिष्क में श्री नरेंद्र मोदी किसी देवदूत की भाँति उभरकर सामने आते हैं, जो वैश्विक क्षितिज में भारतमाता के यश गौरव की कीर्तिपताका फहराते हुए हमसब का नेतृत्व कर रहे हैं।
राजनीतिशास्त्र लोकतांत्रिक समाज में सत्ता की वंशपरम्परा को बदनुमा धब्बे की भाँति मानता है। लेकिन फिर भी देश को दशकों तक राजशाही का यह बदला हुआ स्वरूप ढ़ोने को मजबूर होना पड़ा। डा.लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख, पं.दीनदयाल उपाध्याय, अटल विहारी वाजपेयी जैसे महान नेताओं के नेतृत्व में समय-समय पर वंशपरम्परा के तनाशाही सिलसिले को तोड़ने की कोशिशें भी हुईं। लेकिन इन कोशिशों को स्थाई भाव यदि किसी ने दिया है तो वे हैं श्री नरेन्द्र मोदी।
मोदीजी ने राजनीति में अभिजात्य वर्गीय तिलस्म को तोड़ा। एक गरीब परिवार में जन्मा बेटा जो कभी परिवार के पोषण के लिए चाय बेंचता था आज देश का नेतृत्व करते हुए उन सपनों को यथार्थ के धरातल पर उतारता जा रहा है..जो हर भारतवासी देखते थे। एक साधारण कार्यकर्ता को उसकी क्षमता और प्रतिभा के अनुरूप गढ़कर निखारने का काम विश्व में कोई राजनीतिक संगठन करता है तो वह संगठन है भारतीय जनता पार्टी..जिसकी कोख से मोदीजी जैसे देवदूत का जन्म हुआ। मोदीजी आज भारत ही नहीं विश्व के तमाम राजपुरुषों के लिए एक रोलमॉडल की भाँति हैं।
श्री नरेन्द्र मोदी के साथ स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम प्रधानमंत्री बनने श्रेय व गौरव जुड़ा है। श्री मोदी स्वतंत्रता संग्राम में भले ही न रहे हों लेकिन उनकी हुंकार में एक संग्रामी जैसी ही गर्जना है। इसीलिए वे नारा देते हैं- गंदगी भारत छोड़ो, गरीबी भारत छोड़ो। उनमें यही संग्रामी भाव हिलोरें मारता है, इसलिए 2014 में जब उन्होंने प्रधानमंत्री के पद की शपथ ली तो पहला बड़ा अभियान महात्मा गाँधी की स्मृति को समर्पित करते हुए स्वच्छता को लेकर शुरू किया। महात्मा गांधीजी की शतार्ध जयंती के अवसर पर यह एक पवित्र श्रद्धांजलि स्वरूप है।
गाँधी जी ने अपने जीवन का पहला प्रयोग स्वच्छता को लेकर ही किया था। यहीं से उनकी एक प्रयोगधर्मी महामानव के रूप में सार्वजनिक जीवन की यात्रा शुरू होती है। मोदीजी ने इस अभियान को सर्वोच्च वरीयता पर रखा। आज लगभग समूचा भारत..खुले में सौंच..के अभिशाप से मुक्त है। अगले दो वर्षों तक देश में तीन करोड़ परिवारों का अपना पक्का सुव्यवस्थित मकान होगा.. जिनमें से ज्यादातर बेघर, व स्लम एरिया में रहा करते थे।
श्री मोदी के ध्येय में महात्मा गांधी के दरिद्र नारायण और पं.दीनदयाल जी का अंत्योदयी समाज वरीयता में सर्वोपरि है। आज करोड़ों जनधन खाते हैं..जहाँ सरकार की मदद सीधे पहुँचती है। गरीब परिवार की माताओं बहनों को आँसू पोछने का काम यथार्थ रूप में यदि किसी ने किया है तो वे श्री मोदीजी ही हैं। देश के हर गरीब परिवार की रसोईघर में गैस सिलेंडर और चूल्हे पहुँँचने का काम हुआ है। स्वास्थ्य और चिकित्सा हर व्यक्ति की सबसे बड़ी जरूरत है। समर्थवानों के लिए सबकुछ आसान है पर गरीबों के लिए पहाड़ जैसी समस्या। हमारे प्रधानमंत्रीजी ने आयुष्मान भारत योजना के तहत इसे आसान बनाया है। अब पाँच लाख रुपये तक का इलाज इस योजना से सहजता से हो रहा है।
श्रीमोदी जी के नेतृत्व में वैश्विक क्षितिज पर उभरते और तेजी से बढ़ते हुए भारत के समक्ष कोविड-19 महामारी एक विपत्ति की भाँति आई। यद्यपि यह वैश्विक समस्या है फिर भी आबादी के दृष्टि से विश्व के दूसरे बड़े देश के लिए यह बड़ी चुनौती है। पहले ही दिन से श्री मोदी ने इस विपत्ति को संजीदगी के साथ लिया और जनजन में कोरोना से लड़ने का हौंसला भरा। परिणाम यह कि कोरोना से होने वाली मृत्युदर अन्य विकसित देशों के मुकाबले भारत में बहुत कम है।
आज हमारे वैज्ञानिकों ने स्वदेशी वैक्सीन की खोज कर ली, हमारी फर्मा कंपनियों ने उसका उत्पादन शुरू किया है। 70 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सिनेट हो चुके हैं। औसत एक दिन में ही इतना टीकाकरण होता है जो किसी यूरोपीय देश की आबादी से ज्यादा है। इस विस्मयकारी अभियान को आज दुनिया देख और सराह रही है।
कोरोना ने विश्व की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को ध्वस्त किया है..अपना देश भी अछूता नहीं। लेकिन हम देश की कृषि व्यवस्था के दमपर अपने पाँवों में खड़े हैं। मोदीजी ने कृषि क्षेत्र को सबसे संभावनाओं वाले क्षेत्र के रूप में रेखांकित किया है। वे खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने की दिशा में कटिबद्ध हैं। कोरोना की सबसे ज्यादा मार श्रमिकों, सीमांत किसानों व फुटपाथ व्यापारियों पर पड़ा है। सभी फिर से सँभले और समाज की मुख्यधारा में बने रहें.. इसके लिए 20 लाख करोड़ का बजट दिया है..। साथ ही 'आत्मनिर्भर भारत' का मंत्र भी।
रक्षा व अन्य क्षेत्रों में आत्मनिर्भर भारत की पहल का तत्काल असर देखने को मिल रहा है। रक्षा मंत्रालय ने सौ से ज्यादा ऐसी रक्षा सामग्री चिन्हित की है जिसका आयात अब नहीं होगा। मोदीजी के नेतृत्व में एक सक्षम भारत का उदय हुआ है। पाकिस्तान की हर हरकतों का दृढ़ता से जवाब दिया गया और अक्सर आँख दिखाने वाला चीन जबतब समझौता वार्ता की टेबल में बैठा मिलता है। ऐसा समर्थ और सक्षम भारत देखने के लिए देशवासियों को सत्तर वर्ष का इंतजार करना पड़ा। मोदीजी ने रक्षानीति को रक्षात्मक से आक्रामक बना दिया। हम आज विश्व की महाशक्ति माने जाते हैं।
जो कश्मीर स्वतंत्रता के बाद से ही नासूर की तरह लहकता था..। उस नासूर से अब मुक्ति मिल चुकी है। अनुच्छेद 370 इतिहास का विषय बन चुका है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब एक राज्य के रूप में पुष्पित पल्लवित हैं। मुसलिम माताओं-बहनों को तीन तलाक जैसे नरकीय रिवाजों से मुक्ति मिल चुकी है। सभी देशवासी एक हैं..एक सा उनका अधिकार हो..सभी के लिए एक विधान हो इस दिशा में भी देश आगे बढ़ चुका है।
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हमारे स्वाभिमान, आस्था व विश्वास की पुनर्प्राणप्रिष्ठा का रहा है। रामजन्म भूमि में भगवान राम का विशाल और गरिमामयी मंदिर अब आकार लेने को है। यह सब मोदीजी के लौह व्यक्तित्व और अटल इच्छाशक्ति का परिणाम है। ईश्वर श्री नरेंद्र भाई मोदी को इतना सामर्थ्य दे कि.. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा..गीत की पंक्तियों से उतरकर यथार्थ के धरातल पर फली भूत हो।
लेखक- मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार व राष्ट्रवादी विचारक हैं।