ममता ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए पारित कराया विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में एक बार फिर विधान परिषद के गठन का रास्ता साफ हो गया। मंगलवार को विधानसभा में राज्य में विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव 69 मतों के मुकाबले 196 मताें से पारित हो गया।संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने विधानसभा के पटल पर विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव पर हुई बहस के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सदन में उपस्थित नहीं थीं। भाजपा ने विधान परिषद के गठन के सरकार के प्रस्ताव का विरोध के बाद भी प्रस्ताव 69 के मुकाबले 196 मतों से पारित हो गया।
भाजपा ने बताया अनैतिक -
सदन में बिल पर हुई चर्चा के दौरान प्रतिपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि हम विधान परिषद के खिलाफ हैं, क्योंकि विधान परिषद के माध्यम से राजनीतिक रूप से खारिज किए गए लोगों को पिछले दरवाजे सदन में भेजने की कोशिश की जा रही है। अधिकारी ने कहा कि जिस राज्य में सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता नहीं मिल रहा है, वहां विधान परिषद जैसा खर्चीला कदम अनैतिक है। उन्होंने कहा कि छह सालों के दौरान विधान परिषद के गठन से 600 से 800 करोड़ रुपये का खर्च होगा। यहां 40 लाख प्रवासी मजदूर हैं जिनके हित की चर्चा ममता सरकार को नहीं है लेकिन बैक डोर से सत्ता में बने रहने के उपाय लगाए जा रहे हैं।
राज्यपाल और केंद्र सरकार के पास जाएगा विधेयक -
वर्तमान में बंगाल में 294 सदस्यीय विधानसभा है, मगर राज्य में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है। मगर फिर से बंगाल में विधान परिषद स्थापित करने का निर्णय लिया गया है। अनुमान यह कि विधान परिषद में 98 सदस्य हो सकते हैं। बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं। चूंकि एक विधान परिषद में सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, इसलिए विधान परिषद में 98 सदस्य हो सकते हैं। अब इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा जाएगा। उसके बाद इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा।
विधान सभा परिषद तृणमूल की मजबूरी -
उत्तराखंड में संवैधानिक संकट के चलते तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद बंगाल में ममता बनर्जी की कुर्सी पर भी खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि वर्तमान में ममता सदन की सदस्य नहीं है, ऐसे में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से 6 माह में चुनाव जीतना बेहद जरूरी है। उनकी ये अवधी 4 नवंबर को पूरी हो रही है, इसके लिए जरूरी है की उपचुनाव हो लेकिन कोरोना संकट के चलते निर्वाचन आयोग ने सभी चुनावी गतिविधियों को निरस्त कर दिया है। अब ममता के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए विधान परिषद ही एक रास्ता है, इसलिए वे परिषद के पुनः गठन पर जोर दे रही है।