चंबल से सालाना पांच करोड़ की रेत डकैती!: राजनेताओं और अधिकारियों के संरक्षण में फलफूल रहा है अवैध रेत खनन का कारोबार…

विशेष प्रतिनिधि, भोपाल। ग्वालियर-चम्बल की प्रमुख बड़ी नदी चम्बल से रेत का अवैध खनन लगातार जारी है। हाल ही में कृषि मंत्री ऐंदल सिंह के ' पेट माफिया ' वाले बयान के बाद अवैध रेत खनन का कारोबार एक बाद फिर मुद्दा बनने लगा है। अदालती रोक से लेकर एनजीटी की रोक के बाद चम्बल में धड़ल्ले से रेत खोदी जा रही है। वजह बड़ी साफ है कि यहां रेत खनन का यह कारोबार 5 हजार करोड़ तक सालाना है। इस कारोबार में अंचल के बड़े राजनेताओं के संरक्षण में पल रहे ‘दंबंग’ लोग शामिल हैं। मुरैना अवैध खनन का ‘एपिक सेंटर’ बना हुआ है। रेत खनन रोकने के सरकारी प्रयास नाकाम ही साबित हुए हैं। एनजीटी व हाईकोर्ट ने जो एडवायजरी जारी की उस पर तो कतई अमल नहीं हुआ है। नतीजा यह है कि अवैध खनन करने वालों के हौंसले बुलंद है और खनन को रोकने वाली एजेंसियां उनके आगे नतमस्तक हैं।
सडक़ों और गांवों में लगी है रेत की मंडिया:
अवैध रेत का कारोबार करने वाले इस हद तक दुस्साहसी है कि मुरैना में वन वभिाग और पुलिस विभाग के अधिकारियों के घरों के सामने खड़े होकर रेत का कारोबार करते हैं। मुरैना इन दिनों अवैध रेत का सबसे बड़ा अड्डा बना हुआ है। मुरैना में धौलपुर रोड पर अम्बाह बायपास के ठीक सामने रोजाना अवैध रेत की मंडी सजती है। रेत माफिया और उनके कारिंदे यहां रेत से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां लेकर खड़े होते हैं और खुलेआम रेत बेचते हैं। पुलिस और वन विभाग के बड़े अधिकारी भी रोजाना आते-जाते यह गोरखधंधा देखते हैं, लेकिन मजाल है कि कोई रेत माफिया को छेड़ भी दे। इसी तरह जौरा रोड पर पीजी कॉलेज के पास भी अवैध रेत की मंडी लगती है। और तो और मुरैना में एसपी बंगले के पास ही अवैध रेत का कारोबार धड़ल्ले से चलता है। मुरैना में ही बड़ोखर में रोजाना दर्जनों की तादाद में ट्रैक्टर-ट्रॉलियां भरकर रेत बिकने आती है।
पांच हजार करोड़ सालाना का है कारोबार:
सूत्र बताते हैं कि चम्बल में श्योपुर सबलगढ़ से लेकर अम्बाह, पोरसा,और भिंड में अटेर उसैंद घाट तक और राजस्थान के घौलपुर भरतपुर एवं उप्र के इटावा तक चम्बल से रेत का जबर्दस्त उत्खनन हो रहा है। इन इलाकों से हर साल 5 हजार करोड़ तक की रेत का कारोबार किया जा रहा है। तीनों राज्यों का सरकारी तंत्र उत्खनन को रोकने में नाकाम साबित हुआ है। सूत्र बताते हैं कि मुरैना से भिण्ड तक रोजाना 400 से 500 ट्रैक्टर-ट्रॉली रेत निकाली जा रही है, जबकि एक सैकड़ा से अधिक डंपर व ट्रक भी निकलते हैं। उधर मुरैना से श्योपुर तक हर दिन 50 से 60 टैक्टर-ट्रॉली और डंपर अवैध रेत निकाली जा रही है। सूत्रों का कहना है कि एक साल में अवैध रेत का यह कारोबार 5 हजार करोड़ तक जाता है। इसमें सिंध नदी से होने वाला अवैध उत्खनन भी शामिल है।
सेटेलाइट से पकड़े गए अवैध खनन के अड्डे, फिर भी कार्रवाई नहीं
अवैध खनन की हकीकत पता करने के लिए पिछले दिनों में मुरैना के विभिन्न स्थानों पर सैटेलाइट इमेजरी कराई गईथी। इसमें रेत व पत्थर के 96 खनन स्थानों की रिपोर्ट तैयार की गई। इस रिपोर्ट में वन विभाग के अधिकारियों ने बताया था कि क्षेत्रों में अवैध खनन से खनिज संपदा तेजी से घट रही है। प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने हर तीन माह में सैटेलाइट इमेजरी व उसकी रिपोर्ट पर समीक्षा के निर्देश दिए थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके बाद से तो रेत खनन के इलाके और ज्यादा बढ़ गए हैं।
बैरियरों और जांच-चौकियों पर कोई रोक-टोक नहीं:
पिछले एक दशक से ज्यादा समय से चम्बल से रेत निकालने पर रोक लगी है, लेकिन यहां से रेत का खनन जारी है और यह रेत हर उस चौकी और बैरियर से पास होकर बाजार तक आ रही है, जिन पर इसे रोकने का जिम्मा है। चम्बल से निकालकर रेत भानपुरा, सराय छोला, देवी चौकी के बाद आरटीओ बैरियर, सैल्स बैरियर, कृषि उपज मंडी नाका और छौंदा टोला प्लाजा होते हुए ग्वालियर तक आती है। लेकिन कहीं भी रेत से भरे इन वाहनों को पकड़ा नहीं जाता। हाईकोट ने वन विभाग और मुरैना प्रशासन को रेत परिवहन के लिए इस्तेमाल होने वाले रास्तों को बंद करने के निर्देश दिए थे, इतना ही नहीें चम्बल के घाटों पर वोटिंग के जरिये निगरानी के लिए भी कहा पर आज तक ऐसा नहीं हुआ।