पुकार: नाले में तब्दील स्वर्ण रेखा नदी के उद्धार के लिए कौन बनेगा भगीरथ
ऐतिहासिक नदी गिन रही अंतिम सांसे, पक्की बनने से गिरा भूजल स्तर
ग्वालियर,न.सं.। राजशाही के जमाने में मेरी खूब पूछ परख होती थी। मेरा उद्गम हनुमान बांध से हुआ है, लेकिन अब मेरा वजूद समाप्त होकर महज एक नाला रह गया है। आज मेरी सांसों में गंदगी घुल चुकी है। यह मौन पीड़ा शहर के बीच बहने वाली स्वर्ण रेखा नदी की है। करीब 30 किलोमीटर लंबी यह नदी कभी शहर की जीवन रेखा थी। इस नदी में आजादी के समय का इतिहास भी समाया हुआ है। यह वही नदी है जिसके किनारे अंग्रेजों से लोहा लेने वाली वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अंतिम सांस ली थी। जहांं वीरांगना का समाधि स्थल बना हुआ है। आज इसका काफी भाग नाले में बदल चुका है। शहर के बीच से होकर बहने वाला स्वर्ण रेखा नाला कभी स्वर्ण रेखा नदी हुआ करती थी । यह नदी इस शहर की शान हुआ करती थी। इस नदी का उद्गम हनुमान बांध से हुआ है, लेकिन आज स्वर्ण रेखा नदी का नाम सरकारी कागजोंं में तो है, लेकिन असल मेंं यह लोगों और प्रशासन की लापरवाही से एक नाला बन चुकी है। जब से स्वर्ण रेखा कंक्रीट की बनी है तब से नगर मेंं भूजल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। जिसका परिणाम यह है कि स्मार्ट सिटी वाले इस महानगर में हंैडपंप सूख चुके हैं और भी फेल होती जा रही है। शहरवासियों की प्यास तिघरा का पानी नहीं बुझा पा रहा है। जिसके कारण नगर निगम पानी के लिए बोरिंग कर धरती का कलेजा छलनी करने में लगा है। विकास के नाम पर अधिकारियों ने शहरवासियों को स्वर्ण रेखा में साफ पानी बहा कर उसमें नाव चलाने का सपना दिखा कर करीब एक दशक पहले करोड़ोंं खर्च कर इस स्वर्ण रेखा को कंक्रीट कर दिया था। नाव तो नहीं चली, लेकिन तब से शहर का भूजल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। अब सवाल यह है कि इस नदी के उद्धार के लिए भगीरथ कौन बनेगा।
अमृत योजना के तहत डलनी है सीवर लाइन
स्वर्ण रेखा नदी में सीवर के लिए अमृत योजना के तहत लाइन डाली जानी है। नाम न छापने की शर्त पर निगम के एक अधिकारी ने कहा कि दो साल से इस स्वर्ण रेखा में सीवर लाइन नहीं डल पाई है। अधिकारी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अधिकारी यह तय नहीं कर पा रहे हंै कि सीवर लाइन बाहर से डाली जाए या अंदर से।
इन कामों ने किया नदी को नाले में परिवर्तित
-2009 से पहले स्वर्ण रेखा को सिंचाई विभाग के माध्यम से पक्का किया गया।
-आसपास की दीवारों के साथ-साथ तल भी पक्का किए जाने से पानी जमीन में बैठना बंद हो गया।
-बारिश का पानी व्यर्थ बहकर शहर से बाहर चले जाने की वजह से जल स्तर
नीचे चला गया।
-लश्कर और ग्वालियर उपनगर के अधिकतर गंदे नालों का निकास इसी नदी में है।
-पीएचई ने शहर के सीवर को बाहर ले जाने के लिए स्वर्णरेखा के नीचे सीवर लाइन बनाई है।
-सीवर लाइन की गंदगी लगातार नदी में घुलती जा रही है।
-बीते सात साल से स्थिति यह है कि नदी में बने सीवर के चैंबरों से गंदगी निकलती हुई साफ देखी जा सकती है।
इन अधिकारियों ने की थी कोशिशें
-तत्कालीन जिलाधीश आकाश त्रिपाठी ने शहर में अतिक्रमण हटाने के दौरान स्वर्ण रेखा नदी से भी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। उनके जाने के बाद सब पहले जैसा हो गया।
-तत्कालीन जिलाधीश पी नरहरि ने मुरार नदी और स्वर्णरेखा नदी के संवर्धन मामले में खासी रुचि लेकर काम कराया था। मुरार नदी से कुछ हद तक अतिक्रमण भी हटा, लेकिन गंदे पानी को नहीं रोका जा सका।
-तत्कालीन निगमायुक्त विनोद शर्मा ने स्वर्ण रेखा को सैलानी स्पॉट बनाने की कोशिश की थी। इसके लिए नदी का बहुत सा हिस्सा साफ भी किया गया था। इसके बाद इसके दोनों किनारों पर सर्विस रोड भी डालने की योजना बनाई थी ताकि शहर की यातायात व्यवस्था काबू में आए और नदी को प्रदूषित होने से बचाया जा सके, लेकिन उनके सेवानिवृत्त के बाद सारे काम पूरी तरह से बंद हो गए।
कैसे होगा सौंदर्यीकरण
एक दिन पहले ही जनहित याचिका पर न्यायालय ने निगमायुक्त, जलसंसाधन विभाग, व एडीएम से पूछा है कि नदी का सौंदर्यीकरण कैसे होगा।
इनका कहना है
ग्वालियर शहर के विकास में पुरातन समय से स्वर्ण रेखा नदी का बड़ा योगदान रहा है। स्वर्ण रेखा अपने वापस स्वरूप में आए इसके लिए हम पूरा प्रयास करेंगे। जनअभियान से अगर इस नदी क कायाकल्प होता है तो हम जनअभियान भी चलाएंगे। अगर कांग्रेस की सरकार आती है तो इस नदी में साफ पानी बहे उसके लिए पूरे प्रयास किए जाएंगे।
शोभा सिकरवार
महापौर
स्वर्ण रेखा में साफ पानी कैसे चले इसके लिए हम ब्लू प्रिंट तैयार करेंगे। चार जुलाई से पहले हमारी कोशिश है कि हम इसकी जानकारी न्यायालय में प्रस्तुत करंे। इस नदी को साफ करने के लिए जनअभियान चलाने की जरूरत है।
आरपी झा
मुख्य अभियंता
जलसंसाधन विभाग
ग्वालियर