संस्कार पाठशाला' ने बदला गरीब बच्चों का जीवन: अनिवार्य है गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा का पाठ करना
बच्चों को कंठस्थ हैं गीता के श्लोक और उनके अर्थ;

अनुराग तागड़े: इंदौर। बाम्बे हॉस्पिटल के सामने से चिकित्सक नगर के पास गरीब बस्ती है। यहां पर महाराष्ट्र से आए लगभग 450 परिवार रहते हैं। वे यहां पिछले 25 वर्षों से रह रहे हैं और उनके परिवारों का काम शहर से अटाला (कबाड़) इकठ्ठा करना और उसे बेचना है। पुरुष अटाला इकट्ठा करने कॉलोनियों में जाते हैं। वहीं, महिलाएं पास की कॉलोनियों में झाडू पोंछा और बर्तन मांझने का काम करती हैं।
छोटे से कमरे में 6-8 लोग रहते हैं। बच्चे दिनभर इधर-उधर घुमा करते थे, क्योंकि इनके माता पिता को इतना समय नहीं कि बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दें। सरकारी स्कूल भी यहां से तीन किलोमीटर दूर है। वे नौकरी पर जाएं कि बच्चों को स्कूल छोड़ने। 5-12 वर्ष के उम्र की बच्चियों को घर पर ही रहना पड़ता था। लड़की के 15-16 वर्ष होने पर शादी कर दी जाती थी। बीस वर्ष की उम्र तक वह दो बच्चों की माँ बन जाती थी।
इन परिस्थितियों को देखकर पूर्ण सृजन वेलफेयर सोसायटी के राजन रानड़े ने महालक्ष्मी नगर में 'संस्कार पाठशाला' नाम एक स्कूल से प्रारम्भ किया। 7 साल में इस स्कूल ने सबकुछ बदलकर रख दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता श्री रानड़े बताते हैं कि हमारा सोचना था कि अगर बस्ती में आर्थिक और सामाजिक उत्थान करना है तो उसका एक मात्र रास्ता है-शिक्षा। बच्चे शिक्षित व संस्कारित हों ताकि भविष्य में वे आत्मनिर्भर बन सकें।
शुरू में काफी कठिनाई हुई। परिवारों को यह समझाना पड़ा कि शिक्षा से बच्चों की जिंदगी बदल जाएगी। पहले बस्ती से मात्र 12 बच्चियां आने को तैयार हुईं। आज वे बालिकाएं आठवीं तक पहुंच गई हैं।
गायंत्री मंत्र और हनुमान चालीसा अनिवार्य
इस संस्कार पाठशाला में वर्तमान में 80 बच्चे कक्षा 1 से 8 तक पढ़ रहे हैं। सभी बच्चों को प्रार्थना करना, ध्यान लगाना और गायत्री मंत्र के साथ-साथ हनुमान चालीसा का पाठ करना अनिवार्य है। इतना ही नहीं कक्षा 5 से 8 तक के बच्चों को श्रीमद भागवत गीता के श्लोक अर्थ सहित कंठस्थ हैं।
इस वर्ष से स्कूल द्वारा बस्ती के बच्चों के साथ-साथ क्षेत्र में चौकीदारी का काम करने वाले व घर में काम करने वाली महिलाओं के बच्चों को भी प्रवेश देने का निर्णय लिया है।
समाज के सहयोग से चलती है पाठशाला
श्री रानड़े ने बताया कि बच्चों को व्यवस्थित शिक्षा मिले, इसके लिए दानदाताओं से लगातार संपर्क करते हैं। स्कूल के लिए भवन किराए पर लिया है। यहां 7 शिक्षिकाएं पढ़ाती हैं। इन सभी पर एक लाख रुपए महीने का खर्च आता है, जिसकी पूर्ती दानदाता करते हैं।
एक दानदाता ने ई रिक्शा की व्यवस्था की है जिससे बच्चे स्कूल आने लगे हैं। बच्चों के यूनिफॉर्म से लेकर सर्दी के दिनों में स्वेटर आदि सभी कुछ दान पर ही निर्भर है। हम घर-घर जाकर लोगों से सहयोग की अपील करते रहते हैं। श्री रानड़े के अनुसार बदलाव लाने के लिए आपको पहल करना पड़ती है। शुरुआत में कठिनाईयां आती हैं पर मेहनत करने पर सफलता भी मिलती है।